सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम नवगीत – भीषण दोहन हुआ प्रकृति का…।)
रचना संसार # 47 – नवगीत – भीषण दोहन हुआ प्रकृति का… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
☆
बदला है परिवेश हमारा,
फटते वसन पुराने हैं।
रीति-रिवाजों को भूले सब,
दो आँखों के काने हैं।
*
सभी रसोई हुई आधुनिक,
सिलबट्टा अब ओझल है।
टूटे मिट्टी के चूल्हे हैं,
नीर बहाता ओखल है।।
कुतर रहे पीतल के बर्तन,
चूहे बड़े सयाने हैं।
*
भीषण दोहन हुआ प्रकृति का,
लुप्त हो रहे हैं जंगल।
दंश मारते लोभी बिच्छू,
यश-वैभव के हैं दंगल ।।
निगल रहे छोटी मछली को,
मगरमच्छ से थाने हैं।
*
दर्प दिखाता अब दिनकर भी,
हुआ विदेशी है घन भी।
पीली पड़ी दूब आँगन की,
घटते जाते पशुधन भी।।
ढोल बजाते लोभी नेता,
दाँव-पेंच सब जाने हैं।
*
बंद फाइलों में घोटाले,
क्रोधित होता है सागर।
जोशीमठ की देख त्रासदी,
विचलित जग है नटनागर ।।
खोटे सिक्के राजनीति के,
अम्मा चलीं भुनाने हैं।
☆
© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)
संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268
ई मेल नं- [email protected], [email protected]
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈