श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – संतोष के दोहे आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 235 ☆

☆ संतोष के दोहे – श्री राजेश पाठक प्रवीण ☆ श्री संतोष नेमा ☆

(संस्कारधानी जबलपुर के सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं सामाजिक जगत के दैदीप्यमान नक्षत्र हमारे अनुज श्री राजेश पाठक प्रवीण पर कुछ दोहे)

हर दिल में बसते सदा, सबके प्रिय राजेश

बिन बोले ही समझते, भाव सभी भावेश

*

संकट में भी साथ दें, दिल है बहुत उदार

रख मन में संवेदना, सुनते करुण पुकार

*

मित्रों के भी मित्र हैं, और बड़े सालार

जब जो भी इनसे मिला, माने वो आभार

*

एक बार जो भी मिले, इनका ही हो जाय

राधा, मीरा सी बने, प्रेम न हृदय समाय

*

तुमसे मिल बजने लगे, कानों में संगीत

प्रीत पनपती हृदय में, लगते सबके मीत

*

एक बार सौभाग्य से, साथ गए बैंकॉक

हिंदी भाषा की वहां, खूब जमाई धाक

*

मित्र नहीं राजेश सा, अपना यह अहसास

चलते उनके साथ जब, बन जाते हैं खास

*

गिरते को जो थाम ले, ऐसे सच्चे मित्र

सबको ही संतोष हो, ऐसा सुखद चरित्र

*

करती हैं माँ शारदे, जिन पर कृपा सदैव

जब जैसा वह चाहते, होता वही तथैव

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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