स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 199 – कथा क्रम (स्वगत)… ✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

क्रमशः आगे…

अपनी वंशवृद्धि के लिये।

हर्यश्व ने

माधवी की देह को

जाँचा परखा

जैसे

आहक परखता है

बैल, घोड़े या घड़े को ।

उसने

वेधक दृष्टि डाली

पुष्ट नितम्ब

कदली स्तंभ सी जंधाएँ

उन्नत तेजस ललाट

और

नासिका

सभी उच्च पुष्ट।

अंगुलियाँ

केश

रोम

की सूक्ष्मता निहारी।

देखा

अंग गंभीर भी हैं

और

रक्तवर्ण भी।

कन्या के

सभी अंग

शुभ और आनुपातिक हैं।

हो।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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