श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “उम्मीद ए वफ़ा फिर दगा दे गई है…” ।)

? ग़ज़ल # 129 – “उम्मीद ए वफ़ा फिर दगा दे गई है…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

मिला हमको भी हमसफ़र ज़िंदगी का,

मगर मुख़्तसर था सफ़र ज़िंदगी का।

*

मुश्किलें  इस  कदर सिर पर आईं,

हमदम बन बैठा क़हर ज़िंदगी का।

*

उम्मीद ए वफ़ा फिर दगा दे गई है,

किस तरह अब कटे पहर ज़िंदगी का।

*

न  होंगी  कम  दिक़्क़तें मेरी रोने से,

ग़म मुझे मिला इस कदर ज़िंदगी का।

*

सरेशाम  अंधेरा  छाया  है ‘आतिश’,

किस तरह अब हो बसर ज़िंदगी का।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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