स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 194 – कथा क्रम (स्वगत)✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

‘मेरा जन्म सफल हुआ

मैं धन्य हुआ

कृतार्थ हुआ कि आपने

मुझे

इस योग्य समझा।

किन्तु

ग्लानि में डूबा

मैं हतमागा

क्या कहूँ

कैसे कहूँ

कि अब

मेरा वैभव क्षीण हो गया है।

अब नहीं रहा मैं

वैसा सम्पत्तिवान्

जैसा पहले था।

श्यामकर्ण अश्व भी नहीं है

मेरी अश्व शाला में

और

उन्हें क्रय करने योग्य

धन भी नहीं है

राजकोष में।

किन्तु

‘याचक को निराश कर

कलंकित नहीं होने दूंगा

अपना कुल गौरव ।

निष्फल नहीं रहेगी

आपकी याचना ।

फलवती होगी इच्छा।

ऐसी वस्तु दूंगा

जिससे होगा।

 क्रमशः आगे —

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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