श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 28 ☆

☆ कविता ☆ “किस्मत…☆ श्री आशिष मुळे ☆

किस्मत क्या है

शतरंज की इक चाल है

जिसकी ना कोई पहचान है

बस खेल ही उसकी जान है

 

वो तो अपनी चालें चलेगी

बुद्धि तुम्हारी सुलगेगी

प्रतिचाल तुम्हारी बोलेगी

दो कदम पीछे कभी आगे चलेगी

 

चालें तो आती ही रहेंगी

प्यादे कटाती रहेगी

प्यादों को प्यादे न रहने देना

वजीर उन्हें बना देना

 

कभी आगे कभी पीछे

तुम बस चलते रहना

एक दिन चालें उसकी ख़त्म होगी

उस वक़्त तक, तुम बस

काबिल-ए-कदम रहना…

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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