श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “बातों से रात नपे…” ।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 35 ☆ बातों से रात नपे… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

कच्ची मिट्टी का चूल्हा

गुरसी की आग तपे

डाल अलावों पर डेरा

बातों से रात नपे।

 

धुआँ- धुआँ सा

जग सारा यह

साँस-साँस छाया कुहरा

पात-पात पर

गिरी बूँद जो

लगता है पारा ठहरा

 

उपलों से भरमाती है

मजबूरी हाड़ कँपे।

 

कथरी ओढे़

बैठा जाड़ा

छान रहा है धूप ऩई

बरगद नीचे

बिछा अँधेरा

सूरज डूबा साँझ हुई

 

कुलवधुएँ काढे़ घूँघट

बूढा़ मन राम जपे।

 

मेड़ खड़ी है

लिए फसल का

खेतों में हरियल सोना

बिटिया ब्याही

वाट जोहती

कब होगा उसका गौना

 

ऋतु के सब अखबारों में

मौसम के हाल छपे।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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