श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# शरद ऋतु की एक सुबह #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 158 ☆

☆ # शरद ऋतु की एक सुबह #

कितना सुहावना

 मौसम आया है

गुनगुनी ठंड

साथ लाया है

कलियों पर

मोती चमक रहे है

आस की बूंदें

दमक रही है

चिड़ियों की चहचहाहट

कोमल पत्तों की थरथराहट

किरणों की देखो बाजीगरी

चूम रही है ओस की परी

ताल-तलैया शबनम

लुटा रहे हैं

आंखों को कितना

लुभा रहे है

ताल में वो

छोटी सी नाव

पतवार थामे

बैठे है राव

ताल में तैरती

सिंघाड़े की बेल

नाविक कर रहा

उनसे खेल

सिंघाड़े तोड़ रहा है

टोकरी में भर रहा है

पक्षियों के झुंड

उड़ रहे है

रंग बिरंगे रंगोंसे

जुड़ रहे है

कहीं कहीं धरती पर

बर्फ़ की चादर है

कहीं कहीं इठलाता

आवारा बादर है

पनघट पर

जल उड़ाती सखियां

अपने अपने प्रियतम की

कर रही बतियां

उनके पावों की

रुनझुन करती पायल

हर राहगीर को

कर रही है घायल

बागों में

भंवरों की गुनगुन

चूम रहे है

कलियों को चुन-चुन

कितना अलौकिक

दृश्य है

नयनों को सम्मोहित करता

स्वर्ग सा सदृष्य है

यह ऋतु जीवन की

आस बंधाता है

जीवन सुंदर है,

अनमोल है

समझाता है

शरद ऋतु का आगमन

कितना मनमोहक है

कितना सुहाना है

शरद ऋतु की यह सुबह

हर मनुष्य के लिए

प्रकृति का

खुशियों से भरा

खजाना है /

 © श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares
5 2 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments