आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं – एक नवगीत – प्रवहित थी अवरुद्ध है)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 165 ☆

☆ नवगीत – प्रवहित थी अवरुद्ध है ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

प्रवहित थी अवरुद्ध है

नेह नदी की धार,

व्यथा-कथा का है नहीं

कोई पारावार।

*

लोरी सुनकर कब हँसी?

कब खेली बाबुल गोद?

कब मैया की कैयां चढ़ी

कर आमोद-प्रमोद?

मलिन दृष्टि से भीत है

रुचता नहीं दुलार

प्रवहित थी अवरुद्ध है

नेह नदी की धार

*

पर्वत – जंगल हो गए

नष्ट, न पक्षी शेष हैं

पशुधन भी है लापता

नहीं शांति का लेश है

दानववत मानव करे

अनगिन अत्याचार

प्रवहित थी अवरुद्ध है

नेह नदी की धार

*

कलकल धारा सूखकर

हाय! हो गयी मंद

धरती की छाती फ़टी

कौन सुनाए छंद

पछताए, सुधरे नहीं

पैर कुल्हाड़ी मार

प्रवहित थी अवरुद्ध है

नेह नदी की धार

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१०-६-२०१६

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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