श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# रेवड़ियां #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 155 ☆

☆ # रेवड़ियां #

कॉफ़ी हाउस में

कॉफ़ी पीते हुए

दो बुद्धिजीवी

चर्चा कर रहे थे

विषय की गंभीरता को देख

जोर से बोलने में

डर रहे थे

एक बोला – भाई!

आजकल खूब रेवड़ियां

बट रही है

कुछ लोगों की जिंदगी

भ्रम में कट रही है

घोषणाएं,

एक से बढ़कर एक हैं

क्या वाकई इनका

इरादा नेक है ?

कहीं यह गले की

फांस ना बन जाए

हितग्राहियों के लिए

झूठी आस ना बन जाए

 

दूसरा कॉफ़ी का

घूंट लेते हुए बोला – यार !

तू दिल पर मत ले

संसार ऐसे ही चलता है

किसी के दिल में ठंडक

तो कहीं पर दिल जलता है

गरीबों के साथ यह खेल

बहुत पुराना है

आज लाइम लाइट में है

क्योंकि मीडिया का जमाना है

करोड़ों, अरबों की राशि

कुछ लोग डकार गए

उनका कहीं पर

ज़िक्र नहीं है

डूब रही वित्तीय संस्थाएं

किसी को इसकी

फ़िक्र नहीं है

सब मुखौटा लगाकर घूम रहे हैं

अपनी रसूखदारी पर झूम रहे हैं

 

तू इनकी चिंता मत कर

कॉफ़ी का घूंट ले

नमकीन स्वादिष्ट है

उसका मज़ा लूट ले

बरसों से

रेवड़ियां बट रही हैं

अब ग़रीबों तक आई है

सब इसके भागीदार हैं

बस दिखावे की

चिल्लम चिल्लाई है

भाई ! –

यहां मुद्दे गौण

रेवड़ियां असरदार हैं

यह पूंजीवाद के बिसात पर

सज़ा बाजार है

यहां हर शख्स बिक रहा है

लोकतंत्र शर्मसार है, शर्मसार है/

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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