डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण गीत – यादों की बारात।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 158 – गीत – यादों की बारात…  ✍

जागा सारी रात

अपलक देखी

यादों की बारात।

 

पहली बार मिले थे कब

धुंधवनों में खोया सब

इक दिन सुनकर मधुरिम स्वर

सजग हुआ था मैं सत्वर

खिला मनस जलजात।

 

जब आये थे तुम सम्मुख

मन को मिला अजाना सुख

भीग गये थे मेरे दृग

बिंधा अचानक मन का मृग

नहीं लगा आघात।

 

छोटा सा वह हँसी सफर

सहज कहा था हँस हँसकर

अँगुली की वह क्षणिक हुअन

अंग अंग व्यापी सिहरन

सपनीली सौगात।

 

मन ने देखा मन का रूप

तरल चाँदनी, कच्ची धूप

अपने आप वही सौगंध

किन जन्मों का है सम्बन्ध

आया नवल प्रभात।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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