श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# भोजन के पैकेट… #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 98 ☆

☆ # भोजन के पैकेट… # ☆ 

गांव का एक गरीब

जिसके सोए थे नसीब

भूख से बेहाल

बेरोजगार और कंगाल

काम के तलाश में

शहर आया

शहर की चकाचौंध में घबराया

किस्मत से उसे

एक रैली में

शामिल होने का काम मिला

हाथ में झंडा

नाश्ता का पैकेट

पानी की बोतल के साथ

कुछ नगदी रुपए देख

उसका मन प्रसन्नता से खिला

सब के साथ वह भी

रैली में शामिल होकर

नारे लगाने लगा

साथियों के आवाज़ में

आवाज़ मिलाने लगा

वह रैली में, दिनभर

पूरे शहर में घूमकर

शाम को पार्क में वापस आया

बैठकर थोड़ा सा सुस्ताया

तभी, वहां एक सभा होने लगी

जमकर नारे बाजी होने लगी

कुछ लोग भाषण दे रहे थे

रैली में शामिल लोग

भोजन के पैकेट

ले रहे थे

उस गरीब को

किस बात की

रैली है या सभा है

समझ नहीं आया

वह प्रसन्न था कि वह

बिना मेहनत किए ही

आज अपना पेट भर पाया

उसने हाथ जोड़े

सर झुकाया

और बस इतना कह पाया

हे प्रभु!

आपकी यह अद्भुत लीला है

बिन मांगे ही अन्न मिला है

गांव में दिनभर

मेहनत करके भी

हम, अन्न के दाने-दाने को

तरसते हैं

और

शहर में बिना मेहनत किए ही

भगवान!

भोजन के पैकेट

हम पर बरसते हैं /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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