प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर रचित एक कविता  “सिद्धिदायक गजवदन…”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 97 ☆ सिद्धिदायक गजवदन” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

जय गणेश गणाधिपति प्रभु , सिद्धिदायक, गजवदन

विघ्ननाशक कष्टहारी हे परम आनन्दधन ।।

दुखों से संतप्त अतिशय त्रस्त यह संसार है

धरा पर नित बढ़ रहा दुखदायियों का भार है ।

हर हृदय में वेदना , आतंक का अंधियार है ।

उठ गया दुनिया से जैसे मन का ममता प्यार है ।।

दीजिये सद्बुद्धि का वरदान हे करुणा अयन ।।

प्रकृति ने करके कृपा जो दिये सबको दान थे

आदमी ने नष्ट कर डाले हैं वे अज्ञान से ।

प्रगति तो की बहुत अब तक विश्व ने विज्ञान से

प्रदूषित जल थल गगन पर हो गये अभियान से ॥

फँस गया है उलझनों के बीच मन , हे सुख सदन ॥

प्रेरणा देते हृदय को प्रभु तुम्हीं सद्भाव की

दूर करते भ्राँतियाँ सब व्यर्थ के टकराव की ।

बढ़ रही जो सब तरफ हैं वृत्तियाँ अपराध की

रौंद डालीं है उन्होंने फसल सात्विक साध की ॥

चेतना दो प्रभु कि अब उन्माद से उघरें नयन ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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