डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता  “बहना की पाती… ”। 

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 36 ✒️

? कविता – बहना की पाती… — डॉ. सलमा जमाल ?

सावन बरसा है आंगन में,

आंसू लहराए नैनन में,

सोच रही हूं मैं मन में,

कौन प्रतिबिंबित उर दर्पण में।

यह कैसा परिवर्तन है,

चारों ओर शांति अकंपन है,

मैंने यह नेह पत्र भेजा है,

मन के भावों को सहेजा है।।

 

भाई का दीप्त तो हो यश मयंक,

जग में चमके बन शत् मयंक,

जीवन तेरा बीते निशंक,

मैं चाहे पाऊं कलंक।

यौवन में छलके पौरुष बल,

होगा मेरे जीवन का संबल,

मेरे भाग्य नहीं लिखा सुखभोग,

जीवन मेरा है त्याग योग।।

 

बहना ना मांगती ऐश्वर्य धन,

मुझे ना चाहिए राजभवन,

धन और सेवा में नहीं मेल,

यह सब है भाग्य का खेल।

ससुराल मेरे लिए है जेल,

मेरा जीवन कोल्हू का बैल,

यह दहेज पीड़ित की गाथा है,

जीवन में दुख और निराशा है।।

 

सब अपने में रहते हैं खोए,

पति के पाप कौन धोए,

व्देष – दम्भ – छल – घात लिए,

मद – मोह – लोभ – स्वार्थ लिए।

भोगवादी ना कहलाते महान,

लेने को बैठे हैं मेरे प्राण,

विवाह नारी का दृढ़ बंधन है,

पति धूल माथ का चंदन है।।

 

राखी के पैसे नहीं पास,

केवल है दुखी जीवन निराश,

यह कैसी कठिन परीक्षा है,

यह आंसू बहन की दीक्षा है।

गर पाती सुखों की सेज यहां,

कर देती तुम्हें भेंट जहां,

साड़ी का टुकड़ा साक्षी है,

तेरी बहना की यह राखी है।।

 

करती पाती बंद इसी क्षण।

आ रहे हैं शायद पति परमेश्वर।।

 

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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