आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित नवगीत – बेला…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 106 ☆ 

☆ नवगीत – बेला… ☆

मगन मन महका

प्रणय के अंकुर उगे

फागुन लगे सावन.

पवन संग पल्लव उड़े

है कहाँ मनभावन?

खिलीं कलियाँ मुस्कुरा

भँवरे करें गायन-

सुमन सुरभित श्वेत

वेणी पहन मन चहका

मगन मन महका

अगिन सपने, निपट अपने

मोतिया गजरा.

चढ़ गया सिर, चीटियों से

लिपटकर निखरा

श्वेत-श्यामल गंग-जमुना

जल-लहर बिखरा.

लालिमामय उषा-संध्या

सँग ‘सलिल’ दहका.

मगन मन महका

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१२-६-२०१६

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares
5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments