श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “संतोष के दोहे – भगवान् श्रीकृष्ण । आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 134 ☆

☆ संतोष के दोहे – भगवान् श्रीकृष्ण ☆ श्री संतोष नेमा ☆

सारे बंधन टूटते, खुलें प्रेम के द्वार

कृष्ण प्रकट होकर करें, खुशियों का संचार

 

रक्षा करते धर्म की, करें दुष्ट संहार

हर्षित हैं माँ देवकी, पा कृष्णा उपहार

 

चकित हुईं माँ देवकी, देख चतुर्भुज रूप

शिशु रूप में आईये, हे प्रभु जी सुर भूप

 

बाल रूप में प्रकट हो, भरें खूब किलकार

मुदित हुईं माँ देवकी, अनुपम रूप निहार

 

बजी श्याम की बाँसुरी, झंकृत मोहक तान

राधा बेसुध दौड़तीं, संध्या निशा विहान

 

बाल कन्हैया के दिखें, नित नित अभिनव रूप

अंगुली चूसें पाँव की, अनुपम लगे स्वरूप

 

यमुना जी यह चाहतीं,  प्रभु पद रख लूँ माथ

चरण कमल स्पर्श कर, मैं भी बनूँ सनाथ

 

चंदन सी महके सदा, ब्रज की रज शृंगार

अवसर जब हमको मिले, ब्रज रज करें पखार

 

धन्य धन्य ब्रज भूमि है, श्याम लिए अवतार

मन में भरिये आस्था, रखिये दिव्य विचार

 

श्याम चरण रज चाहते, दूर करें सब दोष

हम अज्ञानी स्वार्थी, हमको दें “संतोष”

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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