आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित सॉनेट ~ छंद सलिला– प्रदोष )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 104 ☆ 

☆ सदोका सलिला – आवारा मेघ ☆

लिए उच्चार

पाँच, सात औ’ सात

दो मर्तबा सदोका।

रूप सौंदर्य

क्षणिक, सदा रहे

प्रभाव सद्गुणों का।८।

सूरज बाँका

दीवाना है उषा का

मुट्ठी भर गुलाल

कपोलों पर

लगाया, मुस्कुराया

शोख उषा शर्माई।९।

आवारा मेघ

कर रहा था पीछा

देख अकेला दौड़ा

हाथ न आई

दामिनी ने गिराई

जमकर बिजली।१०।

हवलदार

पवन ने जैसे ही

फटकार लगाई।

बादल हुआ

झट नौ दो ग्यारह

धूप खिलखिलाई।११।

महकी कली

गुनगुनाते गीत

मँडराए भँवरे।

सगे किसके

आशिक हरजाई

बेईमान ठहरे।१२।

घर ना घाट

सन्यासी सा पलाश

ध्यानमग्न, एकाकी।

ध्यान भग्न

करना चाहे संध्या

दिखला अदा बाँकी।१३।

सतत बही

जो जलधार वह

सदा निर्मल रही।

ठहर गया

जो वह मैला हुआ

रहो चलते सदा।१४।

पंकज खिला

करता नहीं गिला

जन्म पंक में मिला।

पुरुषार्थ से

विश्व-वंद्य हुआ

देवों के सिर चढ़ा।१५।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१५-६-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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