सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

 

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “पहचान”। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 14 ☆

☆ पहचान  

कभी महकती हूँ,

कभी चहकती हूँ;

एक दुनिया खोयी है,

एक दुनिया पायी है!

 

अँधेरे पीछे छूट रहे हैं,

खुशियों के झरने फूट रहे हैं;

कभी तन्हाई थी,

अभी रौशनाई है!

 

अमावस्या ढल रही है,

धूप निकल रही है;

आँखें बनी हैं महताब,

चाल में हैं कई आफताब!

 

ए साईं! तू ही है रखवाला!

ए मौला! इस  रूप में तू ने ही ढाला!

मेरी जब से खुद से पहचान हुई,

दुनिया लग रही है नई नई!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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