प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा  रचित भावप्रवण  “दोहे । हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा # 45☆ दोहे  ☆

कोई समझता कब कहां किसी के मन के भाव

रहे पनपते इसी से झूठे द्वेष दुराव

 

मन की पावन शांति हित आवश्यक सद्भाव

हो यदि निर्मल भावना कभी न हो टकराव 

 

ममता कर लेती स्वतः सुख के सकल प्रबंध 

इससे रखने चाहिए सबसे शुभ संबंध 

 

प्रेम और सद्भाव से बड़ा न कोई भाव 

नहीं पनपती मित्रता इनका जहां अभाव 

 

मन के सारे भाव में ममता है सरताज 

सदियों से इसका ही दुनिया में है राज

 

दुख देती मित्र दूरियां आती प्रिय की याद

करता रहता विकल मन एकाकी संवाद 

 

होते सबके भिन्न हैं प्रायः रीति रिवाज

पर सबको भाती सदा ममता की आवाज

 

बातें व्यवहारिक अधिक करता है संसार

किंतु समझता है हृदय किस के मन में प्यार

 

मूढ़ बना लेते स्वतःगलत बोल सन्ताप

मिलती सबको खुशी ही पाकर प्रेम प्रसाद

 

बात एक पर भी सदा सबके अलग विचार

मत होता हर एक का उसकी मति अनुसार 

 

प्रेम सरल सीधा सहज सब पर रख विश्वास

खुद को भी खुशियां मिले कोई न होय निराश

 

तीक्ष्ण बुद्धि इंसान को ईश्वर का वरदान

कर सकती परिणाम का जो पहले अनुमान

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
5 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments