डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  लेखनी सुमित्र की #54 –  दोहे ✍

सबका मन निर्मल रहे, मन शंका निर्मूल ।

ललित लालसा से परे, रहे विजन के फूल।।

 

देह और मन का मिलन, सिरज रहा संसार।

तन मन का ही समर्पण, कहलाता है प्यार।।

 

दूर-दूर तन से रहो, हो पर मन के पास ।

आती जाती है हवा, देती है एहसास।।

 

भाई चिंता व्याकुल करें, रखे दूर ही दूर ।

अच्छा वैसा करेंगे, जैसे कहे खजूर।।

 

गाल फुलाना, रूठना, सब कुछ आता याद।

दीवारें हैं सामने,  एकाकी संवाद।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Shyam Khaparde

अर्थ पूर्ण दोहे