श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# बोझ #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 44 ☆

☆ # बोझ # ☆ 

हमारा जगतू

जब रिटायर हुआ

विदाई समारोह ने

सबके मन को छूआ

गले में फूलों की माला

ओढ़ा हुआ कीमती दुशाला

परिवार के लिए

डिब्बा भर मिठाई

सहकर्मियों द्वारा

बधाई हो बधाई

इतना स्नेह, प्यार, अपनापन,

सम्मान देखें

उसे तो जमाना हुआ

खुशी से डबडबाई

आंखों के साथ

वो अपने घर को

रवाना हुआ

घर के सब लोगों ने

उसका सत्कार किया

पैर छुए

आशिर्वाद लिया

पत्नी ने आस पड़ोस में

बांटी मिठाइयां

सबने दी, पति-पत्नी को

बधाईयां

 

भोजन के पश्चात

जगतू ने परिवार को

रिटायरमेंट के बाद

मिली राशि दिखाई

देखकर सबके चेहरे पर

निराशा छाई

इतनी कम?

क्यों? कैसे?

क्या कोई गड़बड़ है?

या आपका

बाहर कोई चक्कर है?

 

जगतू के ये सुनते ही

उड़ गये होश

अपने ही लगा रहे हैं

उस पर दोष

जगतू ने भारी मन से

मुंह खोला

अंदर से

द्रवित होकर बोला-

इस छोटी सी तनख्वाह में

तुम सबको ख़ुशी ख़ुशी पाला

खुद आधी रोटी खाई

तुम्हें खिलाया पूरा निवाला

पढ़ाया, लिखाया

काबिल बनाया

तीन लड़कियों की

और तुम्हारी शादी की

तुम्हारे एजूकेशन लोन की

किस्तें दी

होम लोन, वाहन लोन

और सभी लोन

चुकता करके आया हूं

बची हुई राशि का चेक

तुम्हारे लिए लाया हूं

फिर भी आप सब नाराज़ है

शायद मेरी

किस्मत ही खराब है

 

सुबह पत्नी ने

अनमने मन से

चाय पिलाई

जैसे रात भर में

वो हो गई हो पराई

बहू-बेटे ने मुंह फेर लिया

जगतू को भविष्य की

चिंताओंने घेर लिया

 

आजकल

जगतू सुबह उठकर

खुद चाय बनाकर पीता है

फिर सुबह-शाम की सैर

दिनभर अपने मर्जी से

जीता है

आज सुबह पार्क के

बेंच पर बैठ कर

एकांत में

कुछ सोच रहा है

माथे पर आये पसीने को

रूमाल से पोंछ रहा है

मै अब घर में अनवांटेड

रोज बन गया हूं

शायद परिवार के लिए

तो अब एक

बोझ बन गया हूं

बोझ बन गया हूं /

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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