श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी स्वास्थ्य की जटिल समस्याओं से  सफलतापूर्वक उबर रहे हैं। इस बीच आपकी अमूल्य रचनाएँ सकारात्मक शीतलता का आभास देती हैं। इस कड़ी में प्रस्तुत है आपके कुछ दोहे  … हमारे लिए। )

☆  तन्मय साहित्य  # 90  ☆

 ☆ कुछ दोहे  … हमारे लिए ☆

 इधर-उधर सुख ढूँढते, क्यों भरमाये जीव।

बच्चों के सँग बैठ ले, जो है सुख की नींव।।

 

लीलाएं शिशु की अजब, गजब हास्य मुस्कान।

बिरले लोगों को मिले, शैशव सुख वरदान।।

 

शिशु से निश्छल प्रेम ही, है ईश्वर से प्रीत।

आनंदित तन मन रहे, सुखद मधुर संगीत।।

 

रुदन हास्य करुणा मिले, रस वात्सल्य अपार।

नवरस का आनंद है, शैशव नव त्योहार।।

 

स्नेह थपकियाँ मातु की, कुपित प्रेम फटकार।

शिशु अबोध भी जानता, ठंडे गर्म प्रहार।।

 

फैलाए घर आँगने, खेल खिलौने रोज।

नाम धाम औ’ काम की, नई-नई हो खोज।।

 

जातिभेद छोटे-बड़े, पंथ धर्म से दूर।

कच्ची पक्की कुट्टियाँ, बाल सुलभ अमचूर।।

 

बच्चों की तकरार में, जब हो वाद विवाद।

सहज मिलेंगे सूत्र नव, अनुपम से संवाद।।

 

बच्चों में हमको मिले, सकल जगत का प्यार।

बालरूप ईश्वर सदृश, दिव्य रत्न उपहार।।

 

सूने जीवन में भरे, रंग बिरंगे चित्र।

बच्चों सँग बच्चे बनें, उन्हें बनाएं मित्र।।

 

भारी भरकम न रहें, हल्का रखें स्वभाव।

पत्थर पानी में डुबे, रहे तैरती नाव।।

 

बुद्धि विलास बहुत हुआ,तजें कागजी ज्ञान।

सहज सरल हो सीख लें, बच्चों सी मुस्कान।।

 

अधिकाधिक दें हम समय, दें बच्चों पर ध्यान।

बढ़ते बच्चों से बढ़े, मात-पिता की शान।।

 

ज्ञानी ध्यानी संत जन, सब को सुख की चाह।

बस बच्चे बन जाइए, सुख की सच्ची राह।।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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