सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता “इमारतें । )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 79 ☆

☆ इमारतें ☆

क्या सोचती हैं यह इमारतें

यूँ ही बरसों से तनहा खड़ी हुई?

 

क्या यह किसी के इंतज़ार में हैं?

या कोई ऐसा दर्द है हो वो

बयान करने में कतराती हैं?

या कोई ऐसा घाव है

जिसपर मरहम तो लगायी कई बार

पर वो उन ज़ख्मों को भर नहीं पायीं?

 

ऊपर से तो कोई दरार नज़र नहीं आती-

पर क्या यह अंदर से टूट चुकी हैं

और कुछ कहती ही नहीं?

 

क्यों नहीं बातें करतीं यह

उनके चहुदिशा में खड़े

उन आसमान छूते दरख्तों से?

या फिर उनपर लहरा रहे पीले फूलों से?

क्या उन्हें सब कुछ बासी सा लगने लगा है?

 

इन इमारतों के भीतर आते-जाते मैंने

कई आदमी देखे हैं…

उनके आगे भी यह क्यों मौन धारण किये हैं?

क्यों नहीं बयान कर देतीं यह अपनी दास्ताँ

किसी ऐसे दोस्त से जो उन्हें समझ सके?

 

सुनो ए इमारत!

बस, अभी तो बसंत का आगमन हुआ है…

यह खिलने का मौसम है,

मुरझाने का नहीं!

चलो, हम-तुम मिलकर ही डोलते हैं

इन लचकती डालियों के संग,

और मस्त हो जाते हैं

इस खूबसूरत समां में!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

 

 

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अमरेन्द्र नारायण

संवेदनशील प्रतीकात्मक रचना के लिए बधाई