सुश्री निशा नंदिनी भारतीय 

(सुदूर उत्तर -पूर्व भारत की प्रख्यात लेखिका/कवियित्री सुश्री निशा नंदिनी जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – सामाजिक चेतना की अगली कड़ी में  आज प्रस्तुत है प्रवासी भारतीयों को समर्पित एक विशेष कविता प्रवासी भारतीयों को समर्पित….।आप प्रत्येक सोमवार सुश्री निशा नंदिनी जी के साहित्य से रूबरू हो सकते हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सामाजिक चेतना  # 88 ☆

☆ प्रवासी भारतीयों को समर्पित…. ☆

जड़ों से जुड़े ये पुष्प हैं प्रवासी।

वतन की ऊर्जा हिये में हर्षाये

हरेक प्रकोष्ठ में धरा के समाये।

रंग-रूप रीति-नीति धर्म-कर्म संग

जड़ों से जुड़े ये पुष्प हैं प्रवासी।

सांसों में थामे कस्बाई हवा को

उड़ चले सातों समंदर के पार।

कुरीतियों पे करते जमकर प्रहार

विषमताओं के तोड़ते हैं तार।

वृक्षों से झरे पर मुरझाए नहीं

जड़ों से जुड़े ये पुष्प हैं प्रवासी।

फैलाते चहुँ ओर सुरभित गंध

हृदय में बसाये विदेशिये द्वंद्व।

बिसारते न खान-पान बोली-भाषा

अपनो से जुड़ने की हरपल आशा।

नहीं कसमसाते पीड़ा से इसकी

जड़ों से जुड़े ये पुष्प हैं प्रवासी।

उड़े पवन संग गिरे दूर जाकर

खुशबू को रखा हमेशा संभाले।

मिट्टी को अपनी लपेटे तन में

रंगे नहीं हर किसी के रंग में।

सोना उगलती ये धरती सारी

जड़ों से जुड़े ये पुष्प हैं प्रवासी।

 

© निशा नंदिनी भारतीय 

तिनसुकिया, असम

राष्ट्रीय मार्ग दर्शक, इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल, नई दिल्ली

मो 9435533394

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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अमरेन्द्र नारायण

आपकी संवेदनशीलता समझता हूं।लम्बे समय तक प्रवासी रहा हूं।आपने प्रवासी भारतीय की भावनाओं का सही चित्रण किया
है।बधाई।