सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता “लफ्ज़ लफ्ज़ सुनना है । )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 75 ☆

☆ लफ्ज़ लफ्ज़ सुनना है ☆

नाशाद है दिल बस, हारा नहीं है

ज़िंदगी की शय से, मारा नहीं है

 

खोल दो ये किताब, लफ्ज़ लफ्ज़ सुनना है

इस किताब का हमें, सुन्दर अंत बुनना है

 

ज़िंदगी की शाम में और भी फ़साने हैं

वो भी एक ज़माना था, और भी ज़माने हैं

इंतज़ार नहीं तो क्या, कुछ तो लिखा होगा

लिखाई जानने के हम कितने ही दीवाने हैं

 

खोल दो ये किताब, लफ्ज़ लफ्ज़ सुनना है

इस किताब का हमें, सुन्दर अंत बुनना है

 

महफ़िल ये दोस्तों की, लहर लहर बहती है

इतराती ये शान से, कहानी कोई कहती है

भूल ही जाओ ग़म सब, ख़ुशी में अब खोना है

मुस्कान सी जाने क्यूँ आरिज़ पर अब रहती है

 

खोल दो ये किताब, लफ्ज़ लफ्ज़ सुनना है

इस किताब का हमें, सुन्दर अंत बुनना है

 

ज़िंदगी ये बस लम्हे की चुटकी भर के हैं पल

जुस्तजू तुम बिखेर दो खिल उठें कई कमल

धुंआ धुंआ सा अब नहीं हमें यूँ बिखेरना है

लम्हे ये नदिया से बहने लगे हैं कल कल

 

खोल दो ये किताब, लफ्ज़ लफ्ज़ सुनना है

इस किताब का हमें, सुन्दर अंत बुनना है

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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अमरेन्द्र नारायण

सुमधुर और सकारात्मक सोच वाली रचना।लफ़्ज
-लफ्ज सुनने की संवेदनशीलता और
सुन्दर अंत बुनने की भावना ही तो सहृदयता का परिचय देती
है।बधाई।