प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की “ग़ज़ल – अगर हो भावना मन की…।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 29 ☆

☆ ग़ज़ल – अगर हो भावना मन की…  ☆

सदा परिवेश से सबको स्वाभाविक प्यार होता है

मनोहर कल्पना मे सुख भरा संसार होता है

पडोसी से हुआ करती सुखद सदभाव की आशा

अगर बिलभाव होता तो सतत दुखभार होता है

 

हरेक की शांति सुख के हित भला लगता सहारा है

अगर विश्वास उठ जाता तो सब सुखचैन खोता है

हमारे साथ भी ऐसा ही कुछ घटता है बरसो से

पडोसी की नियत खोटी है निश्चित भास होता है

 

सदाचाहा रहे हिलमिल के सब साथ खुशियो से

मगर सब चाह कर भी अब नही विश्वास होता है

 

मिलाकर हाथ जब भी साथ बढने की की गई कोशिश

तो देख उस तरफ से पीठ पर फिर वार होता है

समझ गई अब तो दुनिया भी कि उसका क्या इरादा है

पडोसी से हमे धोखा ही बारम्बार होता है

 

हमारी हर भलाई का मिला बदला बुराई से

सुहानी सरहदो पर नित ही अत्याचार होता है

जहाॅ होता है मन मे मैल कटुता बढती जाती है

निरंतर द्वेष से किसका कही उद्धार होता है

 

अगर हो भावना मन की मिलन उत्सव मनाने की

तो अपने आप ही सबसे सदय व्यवहार होता है

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Shyam Khaparde

अच्छी रचना