श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है जिंदगी की हकीकत बयां करती एक भावप्रवण कविता “मुझे पीड़ा होती है ”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 25 ☆ 

☆ मुझे पीड़ा होती है ☆ 

जब आंखों से धारा बहती है

अनकही दास्तां कहती है

जब कोई राह ना सूझती है

सीने में कील सी चुभती है

तब मुझे पीड़ा होती है

 

जब रात के झूठन में पड़े

रोटी के टुकड़े के लिए

इन्सान के बच्चे को

और कुत्ते के पिल्ले को

लड़ते हुए देखता हूं

बच्चे को हारते और

पिल्ले को जीतते हुए

देखता हूं

तब भूख रुलाती है

तब मुझे पीड़ा होती है

 

जब एक ईमानदार व्यक्ति

निर्धनता है उसकी संपत्ति

न्यायपालिका के दर पर

माथा रगड़ता है

कानूनी दांव-पेंच में

उसका सबकुछ उजड़ता है

छिन जाती है उसकी रोटी

पहनता है बस लंगोटी

न्याय नहीं मिलना

एक नश्तर सा चुभोती है

तब मुझे पीड़ा होती है

 

मां-बाप की लाडली बेटी

मायके से जब बिदा होती है

मनमे क्या क्या सुनहरे

सपने संजोती है

ससुराल में दहेज दानवों के

हाथों अपनी जान गंवाती है

क्या लालच इन्सान को

इतना अंधा बनाती है ?

तब मुझे पीड़ा होती है

 

इक शोषित, पीड़ित बच्ची की

फरियाद सुनीं नहीं जाती है

सब आंखें मूंद लेते हैं

गूंगे, बहरें हो जातें हैं

जब वो असह्य दर्द से

प्राण त्यागती है

उसकी चिता रात के अंधेरे में

जलाई जाती है

दबंग आरोपी

बेखौफ घूमते हैं

मस्ती मे झूमते है

मानवता तार तार होती है

नारी की अस्मिता

जार-जार रोती है

तब मुझे पीड़ा होती है

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Shyam Khaparde

सुंदर रचना