श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – भूकम्प 

 

पहले धरती में कंपन अनुभव हुआ। फिर तने जड़ के विरुद्ध बिगुल फूँकने लगे। इमारत हिलती-सी प्रतीत हुई। जो कुछ चलायमान था, सब डगमगाने लगा। आशंका का कर्णभेदी स्वर  वातावरण में गूँजने लगा, हाहाकार का धुआँ हर ओर छाने लगा।

उसने मन को अंगद के पाँव-सा स्थिर रखा। धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य होने लगा। अब बाहर और भीतर पूरी तरह से शांति है।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

17 जनवरी 2020, दोपहर 3:52 बजे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

writersanjay@gmail.com

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वीनु जमुआर

मन को अंगद के पाँव- सा स्थिर रखना…अर्थात् अपने मन का सारथी बनना…सार तो जीवन का यही है, प्रश्न है हममे से कितने कर पाते हैं???

Rita Singh

जिसके पास अंगद सा धैर्य हो भला उसे कौन भूकंप डिगा सकता है भला!तभी तो कहते हैं न मन के सारे हार है मन के जीते जीत! मन शांत और धैर्यशील हो तो बस फिर क्या बात!!!

माया

चारों ओर भूकंप की भीतरी और बाहरी भयावह स्थिति को मन की स्थिरता ने , तने की जड़ को बचाने के लिए अंगद के पाँव की भूमिका निभाई , दृढ़ निश्चय ने बाहरी और भीतरी कोलाहल को
शांत किया अब क्या था – चारों ओर शांति गुजांयमान थी ।
अति सुंदर मनः शक्ति का उदाहरण रचनाकार की सफलता को इंगित करता है।