श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  –  बीज

 

जलती सूखी ज़मीन,

ठूँठ से खड़े पेड़,

अंतिम संस्कार की

प्रतीक्षा करती पीली घास,

लू के गर्म शरारे,

दरकती माटी की दरारें,

इन दरारों के बीच पड़ा

वह बीज…,

मैं निराश नहीं हूँ,

यह बीज

मेरी आशा का केंद्र  है,

यह जो समाये है

विशाल संभावनाएँ

वृक्ष होने की,

छाया देने की,

बरसात देने की,

फल देने की,

फिर एक नया

बीज देने की,

मैं निराश नहीं हूँ

यह बीज

मेरी आशा का केंद्र है..!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

प्रात: 6.11 बजे, 30.11.2019

 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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अलका अग्रवाल

निराशा में भी आशा का बीज सफलता के नये आयाम खोलकर जीवन को नई ऊँचाइयों पर ले जाता है।अप्रतिम अभिव्यक्ति।??