श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ अंतर्मुखी

बाहरी दुनिया

देखते-देखते

आदमी जब

थक जाता है,

उलट लेता है

अपनी आँखें

अंतर्मुखी

कहलाता है,

लम्बे समय तक

बाहरी दुनिया को

देखने, समझने की

दृष्टि देता है,

कुछ देर का

अंतर्मुखी होना

अच्छा होता है..!

 

©  संजय भारद्वाज

3:33 बजे दोपहर, 25.8.18

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।#घर में रहें। सुरक्षित रहें।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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Rita Singh

अनुकरणीय है अंतर्मुखी होना।

अलका अग्रवाल

थोड़ी देर का अंतर्मुखी होना ही अच्छा होता है।

Shyam Khaparde

अच्छी रचना

वीनु जमुआर

कुछ देर अंतर्मुखी होना…???