श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आज प्रस्तुत है आदरणीय श्री संतोष नेमा जी की  श्रावण मास पर  विशेष कविता  “झूला लागो कदम की डारी ।”)

 

☆ झूला लागो कदम की डारी ☆ 

झूला लागो कदम की डारी ।

झूलें मोहन मुरलिया धारी ।।

झूला लागो कदम की डारी ।

 

कान्हा हँस हँस सबहिं चिढ़ावें ।

राधा बैठी बड़ी सकुचावें ।।

श्याम तक रये अपनी पारी ।

झूला लागो कदम की डारी ।।

 

ग्वाल बाल संग खेलन आवें ।

गोपियों को वो खूब सतावें ।।

करें हास्य नटवर गिरधारी ।

झूला लागो कदम की डारी ।।

 

जब मनिहारिन बने मनमोहन ।

नारी भेष सुंदर अति सोहन ।।

चूड़ियां पहन लईं अतकारी ।

झूला लागो कदम की डारी ।।

 

गए परदेश मोरे सांवरिया ।

नैनन बरसे कारी बदरिया ।।

चिढ़ा रही जा बदरिया कारी ।

झूला लागो कदम की डारी।।

 

सावन फुहारें मनहिं भिगातीं ।

गोपियाँ सब मिल कजरी गातीं ।।

“संतोष”शरण पड़ो सब हारी ।

झूला लागो कदम की डारी ।।

 

झूला लागो कदम की डारी ।

झूलें राधा रसिक बिहारी

झूला लागो कदम की डारी

 

@ संतोष नेमा “संतोष”

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments