प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

 

(प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित  पृथ्वी के स्वर्ग – काश्मीर पर एक अभूतपूर्व कविता “काश्मीर दर्शन”।) 

 

 ☆ काश्मीर दर्शन ☆

 

नभ चुम्बी हिमाच्छादित पर्वत शिखरों से अति भासमान

भारत माता के दिव्य भाल काश्मीर तुम हो अनुपम विधान

 

तुम इस धरती पर स्वर्ग सुखद अति शांति दाई सौंदर्य धाम

हर कंण हर वन हर वृक्ष नदी हर जलधारा मोहक ललाम

 

तुम प्रकृति सुंदरी के निवास पावन आकर्षक  प्रभावन

तुम परम अलौकिक सुंदरतम रूप तुम्हारा कांतिमान

 

दिखता नहीं भू भाग कोई जो हो तुम सा सुंदर महान

हर छोर बिछी सुखद हरीतिमा नीचे नीला आसमान

 

गरिमा गौरव से भरे हुए दिखते सैनिक से देवदार

नभतल में मनमोहक घाटी जिनमें बहते निर्झर हजार

 

गिरि शिखर शोभते हैं शिव से जो तन पर धारे भस्म राग

जो निर्निमेष नित शांत नयन जिन में दिखता गहरा विराग

 

दर्शक के मन में श्रद्धा का भर जाता लखकर सहज भाव

हर यात्री पर परिवेश सदा भर देता है पावन प्रभाव

 

पावनता में है सच्चा सुख आनन्द भरा जिसमें अनन्त

सदियों से इससे प्रकृति की गोद में बसते आए साधु संत

 

 

मनमोहक छवि के विविध रूप हर लेते मन के दुख तमाम

ज्यों सोनमर्ग गुलमर्ग झील डल और आकर्षक पहलगांव

 

सरिता वन पर्वत पवन गगन सब देते हैं संदेश मौन

मन के पवित्र स्नेह भाव बिन सुख दे सकता है कहां कौन

 

नित हरी-भरी सुखदाई परम पावन पवित्र है प्रकृति गोद

जिसका दर्शन स्पर्श सदा हर मन  में भर देता प्रमोद

 

सारा पावन परिवेश प्रकृति सब नदी वृक्ष धरती आकाश

देते हैं शुभ संदेश यही सब हिलमिल जग में रहो साथ

 

केसर चैरी अखरोट सेव के बहुत धर्मी हम वृक्ष बाग

धरती मां से पा जीवन रस रहते सुख से सब भेद त्याग

 

हम  भिन्न जाति  और भिन्न रंग पर हममें न कोई भेद

तुम बुद्धिमान मानव आपस में लड़ क्यों करते नए छेद

 

मानव तू भी तज द्वेष द्वंद छल छद्म और कलुषित विचार

अपने अंतरतम की सुन पुकार स्नेह भाव रख बन उदार

 

क्यों फंसकर  विविध प्रलोभन में करता रहता नित नवल घात

है प्रेम भाव में शांति और सुख जो अनुपम  शिव का प्रसाद

 

ऊंचे हिम शिखरों पर ही जहां बसते हैं हिम शिव अमरनाथ

जिनके दर्शन के पुण्य लाभ हित  यात्रा करता देश  साथ

 

हर दिव्य  दृश्य अनमोल शांति शीतलता का मंजुल निखार

सब साथ सदा मिल दर्शक को आध्यात्मिकता में देते उतार

 

लगता यों जगत नियंता खुद है यहाँ प्रकृति में प्राणवान

मिलता नयनो को अनुपम सुख देखो धरती या आसमान

 

जग सब उलझन भूल जहाँ मन को मिलता पावन विराम

हे धरती पर अविरत स्वर्ग काश्मीर तुम्हें शत शत प्रणाम

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

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Shobhit Gupta

शानदार कविता