प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

 

☆ कविता ☆ “महाशिवरात्रि” पर विशेष – हे! औघड़दानी ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

औघड़दानी, हे त्रिपुरारी, तुम भगवन् स्वमेव ।

पशुपति हो तुम, करुणा मूरत, हे देवों के देव ।।

तुम फलदायी, सबके स्वामी,

तुम हो दयानिधान।

जीवन महके हर पल मेरा,

दो ऐसा वरदान।।

आदिपुरुष तुम, पूरणकर्ता, शिव, शंकर महादेव।

नंदीश्वर तुम, एकलिंग तुम, हो देवों के देव ।।

तुम हो स्वामी, अंतर्यामी,

केशों में है गंगा।

ध्यान धरा जिसने भी स्वामी,

उसका मन हो चंगा।।

तुम अविनाशी, काम के हंता, हर संकट हर लेव।

भोलेबाबा, करूं वंदना, हे देवों के देव  ।।

उमासंग तुम हर पल शोभित,

अर्ध्दनारीश कहाते।

हो फक्खड़ तुम, भूत-प्रेत सँग,

नित शुभकर्म रचाते।।

परम संत तुम, ज्ञानी, तपसी, नाव पार कर देव ।

महाप्रलय ना लाना स्वामी, हे देवों के देव ।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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