॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #4 (46 -50) ॥ ☆

 

विजय कामना सहित बढ पा ‘मारीचि’ उछान

सैनिक सब ‘हारीति’ लख रूके पा वह स्थान ॥ 46॥

 

घोड़ो से खूँदी गई इलायची की घूल

गण्डस्थल में गजों के चिपकी उड़ प्रतिकूल ॥ 47॥

 

टूटी चंदन तरू बँधे गज पद बंधन डोर

किन्तु न ढीली रज्जू हुई बंधी घण्ठ की कोर ॥ 48॥

 

दक्षिण जाते क्रमिक कम होता रवि का ताप

किन्तु पाण्ड्य नृप को लगा रघु का चण्ड प्रताप ॥ 49॥

 

सहित ताम्रपर्णी नदी, अर्जित मुक्तामाल

रघु को अर्पी सबों ने यश जो न सकें सम्हाल ॥ 50॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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