॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #3 (46-50) ॥ ☆

 

हैं यज्ञ सत्कार्य के आप रक्षक, तो यज्ञ के अश्व को आप दे दें

हे वेद सन्मार्ग दिखाने वाले ! ये यज्ञ विध्वंश उचित नहीं है ॥ 46॥

 

रघु के वचन सुन यों, स्वर्गपति को सहसा हुआ एक आश्चर्य भारी

रथ को घुमा बात करनें रघु से उनने की अपने मन की तैयारी ॥ 47॥

 

तुम ठीक कहते हो युवाराज लेकिन, यशी चाहता यश के धन की सुरक्षा

कर यज्ञ सोवा तुम्हारे पिता की, मुझे जीतने की प्रबल दिखती इच्छा ॥ 48॥

 

हे रघु यथा हरि ही पुरूषोत्तम एक, त्रयंबक महादेव ही हैं कहाते

वैसे ही शतक्रुत मुझे मुनि हैं कहते कोई दूसरा ये विशेषण न पाते ॥ 49 ॥

 

इसी से ये घोड़ा पिता का तुम्हारे कपिन्द मुनी सा यहाँ मैने है रोका

मत सगर – संतान सा कुछ करो तुम अगर किया तो तुम्हें फिर है धोखा ॥ 50॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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