॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 3 (1-5) ॥ ☆

करने नृपति की मनोकामना पूर्ण, सखियों का खुशियों से परिपूर्ण आनन

इक्क्षाकु कुल के लिये योग्य संतान – हित सुदक्षिणा ने किया गर्भधारण ॥ 1॥

 

प्रभारहित प्रातः चंद्रमा सम व लोध्र सी पांडु मुख कांति धारे

श्शरीर की कांति बढ़ाने वालें, अलंकरण उसने सभी उतारे ॥ 2॥

 

मृदा सुरभि युक्त अधर से जिसके अतृप्त से रहते नित्य राजन

कि जैसे आतप के बाद हल्के सिंचे से पल्लव से कोई गज बन / धन ॥ 3॥

 

नरेन्द्र होगा दिगन्त भू का कि पुत्र उसका सुरेन्द्र जैसा

इसी से भू रस की लालसा ने विवश किया उसको मन को ऐसा ॥ 4॥

 

न शायद मुझको बताती होगी शरम के कारण हृदय की इच्छा

यही समझ सखियों से निरन्तर की कोशलेश्वर ने रूचि की पृच्छत ॥ 5॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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