श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी  की एक अतिसुन्दर कविता  ‘कट चाय से उतरती मजदूर की थकान’ इस सार्थकअतिसुन्दर कविता के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 92 ☆

☆ कविता – कट चाय से उतरती मजदूर की थकान ☆

पापा बतलाते हैं

1940 के दशक की

उनकी स्मृतियां

जब एक गाड़ी में

किसी छोटी टँकी में

भरी हुई चाय

चौराहे चौराहे

मुफ्त बांटा करते थे

बुकब्राण्ड कम्पनी के

लोग

पीते पीते, धीरे धीरे

लत लग गई

लोगों को चाय की अब

 

चाय स्वागत पेय बन चुकी है

चाय की चुस्कियों के संग

चर्चाएं होती हैं बड़ी बड़ी

 

लड़कियों के भाग्य का

निर्णय हो जाता है

चाय पर, देख सुनकर

मिलकर तय हो जाते हैं

विवाह

 

चाय पॉलिटिकल

सिंबल बन गई है

जब से

चाय वाला

प्रधानमंत्री बन गया है

 

और शिष्टाचार यह है कि

वो अपमानित

महसूस करता है अब , जिसे

चाय के लिए तक न पूछा जाये

 

चाय के प्याले

बोन चाइना के हैं या

मेलेमाईन के

पोर्सलीन के या मिट्टी के कुल्हड़

ये तय करने लगे हैं

स्टेटस

 

चाय की पत्ती

आसाम की है या दार्जलिंग की

केरल की या कुन्नूर की

ग्रीन टी या व्हाइट टी

डिप टी बैग से बनी है या

उबाली गई है चाय

यह तय करती है कि

चाय कौन और क्यों पी रहा है ?

टाइम पास के लिए

मूड बनाने के लिए

कोई सम्भ्रांत ले रहा है चुस्कियां

या

थकान उतार रहा है कोई मजदूर

कट चाय पीकर

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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