श्री प्रहलाद नारायण माथुर

(श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता ‘आसूं छलकने का इंतजार। ) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 49 ☆

☆ आसूं छलकने का इंतजार

जीवन भर दूसरों में गलतियां ढूंढता रहा,

गलतियों में रिश्तों को धुंधला होते देखता रहा ||

जिंदगी रोजाना घटती गयी,

मगर मन हठीला था सब चुपचाप देखता रहा ||

जो गलतियां दूसरों में देखीं,

उनसे ज्यादा खुद में पायी मगर दिल नजरअंदाज करता रहा||

कुछ वो गलत तो कुछ मैं गलत था,

फिर भी अपनी गलतियों को सबसे छुपाता रहा ||

जानता हूँ आपस में प्यार बहुत है,

मगर मजबूरी की जंजीर टूटने का इंतजार करता रहा ||

अफसोस कोई बर्फ नहीं पिघली,

इधर मैं तो उधर वो आसूं छलकने का इंतजार करते रहे ||

पश्चाताप की आग में सब जलते रहे,

मगर आंसू बहाने को मौत तक इंतजार करते रहे ||

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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