श्री प्रहलाद नारायण माथुर

(श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता ‘मौत से रूबरू । ) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 45 ☆

☆ मौत से रूबरू

वैसे तो मुझे यहां से जाना ना था,

मुझे अभी तो और जीना था,

कुछ मुझे अपनों के काम आना था,

कुछ अभी दुनियादारी को निभाना था,

एक दिन अचानक मौत रूबरू हो गयी,

मैं घबरा गया मुझे उसके साथ जाना ना था,

मौत ने कहा तुझे इस तरह घबराना ना था,

मुझे तुझे अभी साथ ले जाना ना था,

सुनकर जान में जान आ गयी,

मौत बोली तुझे एक सच बतलाना था,

बोली एक बात कहूं तुझसे,

यहाँ ना कोई तेरा अपना था ना ही कोई अपना है,

मैं मौत से घबरा कर बोला,

मैं अपनों के बीच रहता हूँ यहां हर कोई मेरा अपना है,

 

मैंने मौत से कहा तुझे कुछ गलतफहमी है,

सब मुझे जी-जान से चाहते हैं हर एक यहां मिलकर रहता है,

मौत बोली बहुत गुमान है तुझे अपनों पर,

तेरे साथ तेरा कोई नहीं जायेगा जिन पर तू गुमान करता है,

मैंने भी मौत से कह दिया,

तुझ पर भरोसा नहीं, तुझ संग कभी इक पल भी नहीं गुजारा है,

भले अपने कितने पराये हो जाये,

मुझे इन पर भरोसा है इनके साथ सारा जीवन बिताया है ||

 

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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