सुश्री मालती मिश्रा ‘मयंती’
कोई मुझे मेरा बचपन लौटा दो
तरक्की कहाँ से कहाँ लेके आई
बेफिक्री वाली वो दुनिया भुलाई
सबकुछ तो है पर सुकून खो गया है
कोई फिर से मेरी वो बेफिक्री लौटा दो
कोई मुझे मेरा बचपन लौटा दो
वो चिकनी मिट्टी से पुता घर-आँगन लौटा दो
कोई मुझे मेरा बचपन लौटा दो..
रोज बनाती हूँ नए आयाम
भागती हूँ दौड़ती हूँ छूने को ऊँचाइयाँ
गगन चुंबी इमारतों में खुद ही खो जाती हूँ
शाम को लौटकर दो पल सुकून के तलाशती हूँ
सुकून से भरी वो सूखी घास की ठंडी छत
कोई ला सकता हो तो फिर से ला दो
वो चिकनी मिट्टी से पुता घर-आँगन लौटा दो
कोई मुझे……..
वो नानी और दादी की परियों की कहानी
राजा रानी के मरने से होती खतम थी
अम्मा की डाँट और दादी की पुचकार
चंदा की रोशनी से जगमग तारों भरी रात
वो तारों को गिनती हुई ठंडी रातें लौटा दो
दादी की कहानियों की सौगातें लौटा दो
कोई मुझे……
वो बरसाती अंधेरी रातों में जुगनू का चमकना
वो जुगनू संग आकाश का धरती पे उतरना
बंद कर हथेली में फिर उनको उड़ाना
वो रंग-बिरंगी तितलियाँ के पीछे दौड़ लगाना
वो कोयल की कूक सुन उसको चिढ़ाना
कोई तो कोयल की मधुर कूक फिर सुना दो
वो रंग-बिरंगी तितलियाँ कोई फिर दिखा दो
कोई मुझे……
वो घर से निकलते स्कूल की पगडंडी पर
लहलहाते खेत गन्नों के वो फिर से दिखा दो
चलो खाएँ गन्ने खाएँ छीमियाँ मटर की
अपने छोड़ दूजे खेतों की राह फिर दिखा दो
नून मिर्च की चटनी संग चने के फुनगी का साग
भूल गई रसना वो स्वाद फिर चखा दो
बड़ी हो गई हूँ फिर बच्चों सी चोरी सिखा दो
कोई मुझे……..
बच्ची थी जब तब ये बड़प्पन था लुभाता
तरह-तरह के सब्जबाग था दिखाता
बताया नहीं इसने कभी
कि गया बचपन न लौटेगा
पाने को इसको कभी फिर मन तरसेगा
फिर न देखूँगी बड़े होने के सपने….2
ले लो सारे सपने वो बेफिक्री लौटा दो
कोई मुझे…….
वो बारिश के पानी में घंटों नहाना
वो हल्दी वाले दूध संग माँ की मीठी डाँट खाना
भूल सारी मस्ती माँ के गर्म आँचल में दुबक जाना
और बिना देरी किए माँ का वैद्य से दवाई ले आना
और नहीं कुछ तो वैद्य की वो कड़वी पुड़िया ही लौटा दो
वो चिकनी मिट्टी से पुता घर-आँगन लौटा दो
कोई मुझे मेरा बचपन लौटा दो।
जीवन की भाग-दौड़ में जीना ही भूल गई हूँ
माँ के बिन जीते-जीते
बचपन से कितनी दूर आ गई हूँ
नहीं चाहिए ऊँचाई
मुझे रोज की वो ठोकरें लौटा दो
वो गिरकर फूटे घुटनों के
घाव फिर दिखा दो
वो घाव पे हल्दी लगाती माँ की मीठी सी छुवन फिर लौटा दो
कोई मुझे मेरा बचपन लौटा दो
वो चिकनी ……….
आज डनलप के मुलायम गद्दे हैं पर नींद रूठ गई
पहले सर्दी में दादी पुआल बिछाती थी
बड़े ही सुकून भरी वो रात होती थी
एक ही रजाई में पुआल के गद्दे पे
सोते थे सभी साथ, होती थी चुहलबाजियाँ
वो पुआल की मीठी सी गरमाहट तो ला दो
नींद वाली सुकून भरी रातें ही लौटा दो
कोई मुझे…….
चिकनी मिट्टी…….
दिवाली पे आँगन में मिट्टी के घरौंदे
रंग मिले चूने की सफेदी से थे चमकते
बड़ों की दुनिया से जुदा
दिवाली के दीयों से जगमगाता…
हमें महलों का अहसास था कराता।
वो मिट्टी का घरौंदा फिर से बना दो
उसमें वो राम दरबार की तस्वीर भी सजा दो
कोई मुझे मेरा बचपन लौटा दो
चिकनी मिट्टी से पुता…..
बड़ी हो गई हूँ तरक्की भी कर लिया है
कमा के रुपैय्या बैंक बैलेंस भर लिया है
फिरभी
फिर भी आँखें खोजती हैं वो मिट्टी की गुल्लक
जिसमें भरे होते बाबूजी के दिए अठन्नी चवन्नी के सिक्के
मेरे बैंक खातों को कोई वो गुल्लक का पता दो
ले लो चेक मेरे बैंक बैलेंस भी ले लो
फिर से मुझे उस गुल्लक की खनक तो सुना दो
कोई मुझे….
वो चिकनी मिट्टी……
© मालती मिश्रा ‘मयंती’
बहुत ही अच्छी अच्छी कविताएं कवियत्री जी को बहुत बहुत बधाई हो
आभार आदरणीया
Bachpan ki masumiyat, bholepan, jisme bhavishya ki koi chinta Hoti Ko yaad dilati ek sahaj rachna ke liye bhaut saadhuvaad.
शुभाशीष के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आ०
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