सौ. उज्ज्वला केळकर

☆  कथा-कहानी  ☆ ऊपरवाला देता है तो … ☆ हिन्दी-रूपांतरण – सौ. उज्ज्वला केळकर

 एना और जोसेफ एक सुखी दंपति है। जोसेफ का इंपोर्ट-एक्सपोर्टका व्यवसाय है। वह व्यवसाय सम्हालता है और एना अकाउंट्स देखती है। उनके सुख में एक ही मलाल है, काँटे की तरह चुभनेवाला। विवाह के पाँच साल हो गये किंतु अब तक उन्हें कोई इश्यू नहीं है। अब यह काँटा निकालने की भी उन्होंने ठान ली।  

दोनों शहर के नामी डॉक्टर के पास गए। डॉक्टर ने दोनों की बारीकी से जाँच की और बताया, बच्चा पैदा करने में जोसेफ सक्षम है किंतु एना कभी माँ नहीं बन सकती।

अब क्या करें? दोनों विचार-विमर्श करने लगे। एना ने कहा, ‘‘किसी अनाथालय से बच्चा गोद लेंगे और उसे पाल-पोस कर बड़ा करेंगे। बच्चा बढ़ता जाएगा और हमें आनंद, सुख मिलेगा।’

जोसेफ ने कहा, ‘मैं बाप बन सकता हूँ, तो क्यों न मैं अपना बच्चा पैदा करूँ? हम सरोगेट मदरके बारे में  सोचेंगे। वह बच्चा दोनों का ना सही, कम से कम मेरा तो होगा ना!’

थोड़ा विचार-विमर्श करने के बाद एना ने अपनी सहमति जताई।

जोसेफने दैनिक न्यूज बुलेटिन में सरोगेट मदरके बारे में एड दे दी। इस एड को मैरी की ओर से प्रतिसाद मिला।

मुलाकात के वक्त मैरीने बताया, ‘उसके दो बच्चे और एक बच्ची है। बच्ची छोटी रोझेलिना। वह पेट में थी, तब उस का पति जॉन, हार्ट अटैक से स्वर्गवासीहुआ।

रोझेलिना अब डेढ़ साल की है। उस का बडा भाई एरिक तीन साल का और उस से बडा लेस्ली पाँच साल का है।’

मैरी कुछ घरों में साफ-सफाई का काम करती है और बच्चों को पालती है। मैरी ने सोचा, सरोगेट मदर की जिम्मेदारी निभाई, तो अच्छे पैसे मिलेंगे।

बच्चों का पालन-पोषण और अच्छी तरह से कर सकूँगी। उन्हें अधिक सुविधा दे सकूँगी।

मैरी के हामी भरने के बाद डॉक्टर साहब ने उसकी बारीकी से जाँच की। मैरी थोड़ी दुबली थी किंतु उसका गर्भाशय सशक्त था। थोड़ी पौष्टिक खुराक, ताजे फल,

टॉनिक मिल जाय, तो उसकी प्रकृति सुधारने में ज्यादा दिन नहीं लगेंगे, यह डॉक्टर साहब की राय थी। आखिर सर्व संमतिनुसार डॉक्टर साहब ने टेस्ट ट्यूब द्वारा

मैरी के गर्भाशय में बीज रोपित किया।

उस के बाद डॉक्टर साहब ने जब पहली बार मैरी की जाँच की, तब वे कुछ हद तक हड़बड़ा गए। उसके गर्भाशयमें दो नहीं, तीन बच्चे पल रहे थे।

तीन-तीन बच्चों का गर्भ में पलना उसके लिए जानलेवा हो सकता था क्योंकि वह बहुत दुबली थी।

डॉक्टर साहब ने मैरी से कहा, ‘तीन में से एक भ्रूण एबॉर्ट करेंगे, लेकिन सीधी-सादी, सदाचारी, पापभीरू, श्रद्धालू मैरी ने कहा,

‘ये नहीं हो सकता डॉक्टर साहब! ये तीनों बच्चे मेरे अपने भी तो हैं। इनमें से किसी एक को मैं कैसे मरवा सकती हूँ?’

डॉक्टर साहब ने मैरी को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन मैरी नहीं मानी।

दिन बीतते गए। मैरी के पेट में बच्चे पलते रहे। अब उस की डिलिव्हरी का समय समीप आ गया। एक दिन मैरी पेट के दर्द से कराहने लगी।

उसे हॉस्पिटल में एडमिट किया गया। बाहर एना और जोसेफ बहुत ही उत्साहित थे। आखिर प्रतीक्षा का क्षण समाप्त हुआ। बाहर आते-आते डॉक्टर साहब ने कहा,

‘काँग्रेचुलेशन! तीन बच्चे हुए हैं। तीनों बच्चे गोल-मटोल, स्वस्थ, सुदृढ़ हैं।’ उन के पीछे-पीछे एक नर्स बच्चों को लेकर बाहर आयी। बच्चों को देखते हुए एना बोली,

‘देखो जोसेफ, तुम्हें अपना एक बच्चा चाहिये था। प्रभू येशू ने तुम्हें तीन-तीन बच्चे दिये। चलो, अब मैरी से मिल कर आते हैं।

इतने में असिस्टेंट डॉक्टर बाहर आए। उन्होंने मैरी का ब्लड प्रेशर शूट हो जाने के कारण उसके गुजर जाने का शोक समाचार सुना दिया। समाचार सुनने के बाद दोनों स्तब्ध थे।

इस स्थिति से थोड़ा उबरने के बाद जोसेफ ने कहा, ‘अब मैरी के बच्चे भी अपने ही हैं।’

‘हाँ! मैरी के कोई नजदीकी रिश्तेदार नहीं है। हम उन्हें अनाथाश्रम में नहीं भेज सकते। हमारे बच्चों को जन्म देते हुए मैरी का देहांत हो गया है।’ एना का गला भर आया।

‘देख, तू अनाथाश्रम से एक बच्चा एडॉप्ट करने का सोच रही थी। मैरी माय ने तुझे तीन-तीन बच्चे दिये।‘

एक ओर मैरी के दु:खद निधन का शोक, दूसरी ओर बच्चों की प्राप्ति का आनंद और तीसरी ओर इन छ: बच्चों को अच्छी तरह से पाल-पोस कर बड़ा करने की चिंता में डूबे  वे दोनों छ: बच्चों को गाड़ी में रखने लगे।

मूल कल्पना – डॉ. मिलिंद विनोद   

स्वैर संक्षिप्त रुपांतर – सौ. उज्ज्वला केळकर

सम्पादिका ई-अभिव्यक्ती (मराठी)

संपर्क – 176/2 ‘गायत्री’, प्लॉट नं 12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ, सांगली 416416 मो.-  9403310170ईमेल  – [email protected]

 ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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