श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “आज का अर्जुन”।)  

? अभी अभी # 89 ⇒ आज का अर्जुन? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

कल के अर्जुन को तो कुरुक्षेत्र में कृष्ण जैसे सारथी और द्रोणाचार्य जैसे गुरु नसीब हो गए, लेकिन हमारे कलयुग के अर्जुन को तो आज अपने जीवन के संघर्ष रथ को खुद ही हांकना है, हमारा आज का अर्जुन एक ओला ऑटो चालक है।

हम आज महाभारत की नहीं भारत के ही एक ऐसे अर्जुन की बात कर रहे हैं, जो कल रात आकस्मिक रूप से हमारा सारथी बना और हमें बातों बातों में ही अपनी राम कहानी सुना गया। ।

एक शोक प्रसंग में जाना अनिवार्य होने से तपते जेठ की अंतिम शाम में ही बारिश और आंधी तूफान ने आषाढ़ के एक दिन का नजारा पेश कर दिया, तो हमें भी मजबूरन एक ऑटो को अनुबंधित कर गंतव्य स्थान की ओर प्रस्थान करना पड़ा। बारिश और आंधी के चलते ही शहर की बत्ती गुल होना, और शहर की प्रमुख सड़कों पर पानी भर जाना, और ट्रैफिक जाम का नजारा हम इंदौर वासियों के लिए आम है। सिर्फ आठ किलोमीटर का रास्ता हमने ट्रैफिक जाम में ५० मिनिट में राम राम करके आखिर तय कर ही लिया।

एक घंटे की शोक बैठक के पश्चात् वही वापसी का सवाल आ गया। आसमान अब भी गरज रहा था, हमारा भीगना तय था।

वापसी में ऑन लाइन ओला बुक किया तो ओटीपी बताने पर जो चालक उपलब्ध हुए, वे ही हमारे आज के अर्जुन निकले। महज तेईस वर्ष की उम्र, देवास का रहने वाला। हमारी जीवन संगिनी भी ऑटो में साथ ही थी, एकाएक पूछ बैठी, क्या तुम राजपूत हो। अर्जुन बेचारा एकाएक सकपका गया और बोल पड़ा, नहीं हरिजन हूं। ।

मुझे लगा अब शायद अर्जुन संवाद के मूड में नहीं है, क्योंकि उसके उत्तर ने मुझे हतप्रभ कर दिया था। मैने परिस्थिति संभालने की कोशिश की, अर्जुन, तुम कहां तक पढ़े हो, उसने फिर रास्ता रोका, कहां पढ़ा लिखा साहब। बस समझो, अनपढ़ हूं। मैने फिर कोशिश की, तुम अपने नाम के आगे क्या लगाते हो। उसने जवाब दिया सोनगरा। तो ऐसे कहो ना, तुम सोनगरा हो, आजकल अपने आप को कोई हरिजन नहीं कहता। मेरे इतना कहने से वह सेफ जोन में पहुंच गया था और उत्साह से बताने लगा, देवास में हमारे पास दो घोड़ियां हैं, जो शादियों के सीजन में बारात में चलती हैं। बाकी समय में ऑटो चला लेता हूं।

कहां इंदौर और कहां देवास, वहीं ऑटो चला लिया करो, रोज आते हो, रोज जाते हो। ऑटो यहीं मांगल्या में रख जाता हूं। रात को देवास जाता हूं, सुबह इंदौर आ जाता हूं। आठ साल हो गए, कोई परेशानी नहीं होती। ।

लगता है, अभी शादी नहीं हुई, इसीलिए घर जाने की जल्दी नहीं है। उसने हां में सर हिलाया। जब कहा, शादी साल भर में कर लो, तो खुश हो गया हमारा अर्जुन। हमारा गंतव्य आ रहा था और अर्जुन की महाभारत अब शुरू हुई।

साहब शहरों में तो कोई परेशानी नहीं, लेकिन गांवों में आज भी हरिजनों को घोड़ी पर नहीं बैठने देते।

कई बार तो हमारे पैसे भी डूब जाते हैं।

देवास बहुत बड़ा जिला है। आगे आगर, सुसनेर, सारंगपुर,

पचोर और पूरे राजगढ़ जिले की भी यही हालत है। पैसा सिर्फ व्यापारियों के पास और नौकरीपेशा लोगों के पास है, बाकी कोई धंधा रोजगार नहीं, कोई इंडस्ट्री नहीं। वही पुरानी परंपराएं और एकरस जीवन। इंदौर जैसे शहर में आकर, आदमी सांस लेता है। ।

बातों बातों में हमारी मंजिल आ चुकी थी।

आज का अर्जुन हमें सुरक्षित छोड़ जीवन समर में फिर से शामिल हो गया होगा। छोटे लोग, छोटी सोच, ऊंचे लोग, ऊंची पसंद। आज हमारे बीच कौन सूत पुत्र है, कौन अर्जुन है और कौन एकलव्य, कहना मुश्किल है। सब हरि के जन हैं, हरिजन कोई नहीं।

लेकिन हमारे आज के अर्जुन को कौन समझाए, जो खुद ही अपने समर का सारथी बना बैठा है।

क्या पता आज के अर्जुन की ही तरह कई अभिमन्यु भी जाति, वर्ण, रूढ़ि, परंपरा और राजनीति के चक्रव्यूह में एक बार प्रवेश तो कर जाते हैं, लेकिन वहां से बाहर निकलना उनके बस में नहीं।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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