श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मेरी आवाज सुनो।)  

? अभी अभी # 66 ⇒ मेरी आवाज सुनो? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

कुछ आवाज़ें हम कई वर्षों से सुनते चले आ रहे हैं, वे आवाज़ें रेकॉर्ड की हुई हैं, वे लोग आज मौजूद नहीं हैं, सिर्फ उनकी आवाज आज मौजूद हैं। कभी उन्हें His Master’s Voice नाम दिया गया था और आज भी उन आवाजों को हम, नियमित रेडियो पर और अन्य अवसरों पर, विभिन्न माध्यमों द्वारा सुना करते हैं।

मेरी आवाज ही पहचान है ! जी हां, आज आप किसी भी आवाज को रेकाॅर्ड कर सकते हो, बार बार, हजार बार सुन सकते हो। जब कोई हमें आग्रह करता है, कुछ गा ना ! और जब हम कुछ गाते हैं, तो वह गाना कहलाता है। जो गाना हमें भाता है, उसे हम बार बार सुनते हैं, बार बार गाते हैं।।

बोलती फिल्मों के साथ ही, फिल्मों में गीत और संगीत का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह आज तक थमने का नाम नहीं ले रहा। पहले अभिनय के साथ अभिनेता को गाना भी पड़ता था, इसलिए कुंदनलाल सहगल और मुकेश अभिनेता बनते बनते गायक भी बन बैठे। बाद में अभिनेता आवाज उधार लेने लगे। और नूरजहां, सुरैया, खुर्शीद, शमशाद बेगम, लता, आशा, तलत, रफी, मुकेश और किशोर कुमार जैसी कई आवाजों ने अपनी पहचान बनाई।

क्या कोई गायक किसी की पहचान बन सकता है। मुकेश, आवारा हूं, गाकर राजकपूर की पहचान बन गए तो किशोर कुमार रूप तेरा मस्ताना गाकर, राजेश खन्ना की पहचान बन गए।

बड़ा विचित्र है, यह आवाज का सफर। पहले गीत जन्म लेता है, फिर संगीतकार पहले उसकी धुन बनाता है और बाद में एक गायक उसको अपना स्वर देता है। जब वह गीत किसी फिल्म का हिस्सा बन जाता है, तो नायक सिर्फ होंठ हिलाने का अभिनय करता है, और वह गीत एक फिल्म का हिस्सा भी बन जाता है। फिल्म में अभिनय किसी और का, और आवाज किसी और की। एक श्रोता के पास सिर्फ गायक की आवाज पहुंचती है। जब कि, एक दर्शक गायक को नहीं देख पाता, उस तक , पर्दे पर होंठ हिलाते , हाथों में हाथ डाले, राजेश खन्ना और फरीदा जलाल, बागों में बहार है , कलियों पे निखार है, गीत गाते , नजर आते हैं।।

सहगल के बाद ही गायकों का सिलसिला शुरू हुआ।

पहले तलत और लता अधिकांश नायक नायिकाओं की आवाज बने, लेकिन बाद में मोहम्मद रफी और मुकेश के साथ साथ किशोर कुमार, मन्ना डे, महेंद्र कपूर, ही मुख्य गायक रहे। मुकेश सन् १९७६ में हम तो जाते अपने गाम कहकर चले गए तो १९८० में रफी साहब भी , अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों , कहकर गंधर्व लोक पहुंच गए। एकमात्र लता और आशा का साम्राज्य आदि से अंत तक आवाज की दुनिया में कायम रहा। जब तक सुर है साज है, गीत है आवाज है। सुमन कल्याणपुर, हेमलता, से होती हुई आज श्रेया घोषाल तक कई नारी कंठ की आवाजें और शैलेंद्र सिंह, येसुदास, सुरेश वाडकर तथा उदित नारायण तक कई पुरुष स्वर श्रोताओं पर अपना प्रभाव छोड़ चुके हैं, लेकिन किसी की आवाज बनना इतना आसान नहीं होता।

राजकपूर के अलावा देवानंद के लिए पहले तलत और बाद में किशोर और रफी दोनों ने अपनी आवाजें दीं। गाता रहे मेरा दिल किशोर गा रहे हैं लेकिन प्रशंसकों के बीच देव साहब छा रहे हैं। दिन ढल जाए में श्रोता एक ओर रफी साहब की आवाज में डूब रहा है और दूसरी ओर तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं, में दर्शक देव साहब की अदा पर फिदा हो रहे हैं। क्या आपको नहीं लगता कि जब रफी साहब शम्मी कपूर के लिए गाते थे, तो उनकी काया में प्रवेश कर जाते थे और जब दिलीप साहब के लिए गाते थे, तो दोनों की रुह एक हो जाती थी।

एक दिलचस्प उदाहरण देखिए जहां अभिनेता और पार्श्व गायक एक साथ पर्दे पर मौजूद हैं। जी हां, मेरे सामने वाली खिड़की में, सुनील दत्त बैठे हैं, और उनके पीछे किशोर कुमार छुपकर एक चतुर नार से मुकाबला कर रहे हैं। कौन अच्छा अभिनेता, सुनील दत्त अथवा गायक किशोर कुमार, हम चुप रहेंगे।

आप सिर्फ इनकी आवाज सुनो और फैसला दो।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
5 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments