श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “उल्लू की दुम”।)  

? अभी अभी # 48 ⇒ उल्लू की दुम? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

इंसानों को न तो पूछ ही होती है और न ही दुम, फिर भी जब मौका आने पर अगर भागने की जरूरत पड़ी तो वह, मूंछ पर ताव देकर नहीं , दुम दबाकर ही भाग जाता है। वह तब क्या किसी से दुम उधार लेता है, क्या बाजार में कोई दुम की दुकान भी है।क्या दुम किसी गाड़ी का एक्सीलेटर है, जो दबाया और भाग मिल्खा भाग।

जल्दी में हमें भी कभी ऐसी परिस्थिति में दुम दबाकर भागना होता था, तो हम भी, न आव देखते थे न ताव, किसी दोस्त की गाड़ी, जाहिर है लोग, साइकिल ही देते थे, बसंती की तरह ये भाग और वह भाग।।

सुना है दो पायों की दुम होती है और चारपायों की पूंछ। पूंछ लंबी केवल ऊंट की ही नहीं होती। होती ही है, होती ही है, हाथी की भी पूंछ लंबी। ईश्वर ने सभी चौपायों को पूंछ का वरदान दिया है, मल्टीपरपज tail। एक तरह की झाड़न, मक्खी मच्छरों और जीव जंतुओं को पूंछ से आसानी से बुहारा जा सकता है। इज़्ज़त ढांकने का कितना शालीन और सरल उपयोगी उपहार है यह पूछ। हम तो पहले जेब से रूमाल निकालेंगे, फिर नाक भौं सिंकोडेंगे और पश्चात् बड़ी आसानी से तशरीफ रखेंगे, मानो धरती माता पर अतिरिक्त बोझ नहीं डालना चाहता यह भारत माता का सपूत।

उसे बुरा तब लगता है, जब अचानक ही कोई उसे उल्लू की दुम कह देता है।

वह शरीफ आदमी रात को जल्दी सोने वाला, प्रातः जल्दी उठने वाला, रोज लक्ष्मी जी की पूजा करने वाला, लेकिन इसका कभी किसी उल्लू से पाला ही नहीं पड़ा। फिर वह उल्लू की दुम कैसे हो गया। बहुत मंथन करने पर यही निष्कर्ष निकला, कि यह किसी उल्लू के पट्ठे की ही कारस्तानी है।।

जागने को तो एक चौकीदार भी रात भर जागता है, वफादार कुत्ता भी रात भर जागकर रखवाली करता है, लेकिन उल्लू तो केवल किसी भी डाल पर रात भर, एक ही स्टेच्यू पोस्टर में ध्यानमग्न बैठा रहता है।

अनजान लोग भले ही उल्लू को मनहूस समझें, जानकार लोग जानते हैं, वह लक्ष्मी जी का वाहन है। लक्ष्मी जी कुबेर पुत्रों के यहां वार त्योहार पर अपने उलूक वाहन पर ही सवार होकर जाती है।

हर भक्त अपने इष्ट, आराध्य के साथ उसके वाहन की भी पूजा अर्चना करता है। साहब अथवा मैम साहब का कोई साधारण ड्राइवर। नहीं होता उल्लू, वह लक्ष्मी जी का वाहन है। हर समझदार व्यक्ति को उल्लू साधते आता है। तब ही जाकर महालक्ष्मी सदा प्रसन्न रहती है।।

बेचारा गधा, बस यहीं मार खा गया, चूहे तक पर विशालकाय गणपति विराजमान हो गए, लेकिन बेचारा गधा, गधा का गधा ही रहा। इसका कुछ नहीं हो सकता।

काश इंसान में थोड़ी अक्ल होती तो वह इन वाहनों के जरिए अपने इष्ट को प्रसन्न कर लेता। हम नंदी का पूजन करते हैं, ताकि भोलेनाथ प्रसन्न हों लेकिन हम चाहते तो हैं कि लक्ष्मी हमारे द्वारे आए, दीपावली पर हम द्वार खुले भी रखते हैं, कभी उलूक महोदय को भी कुछ चाय पानी मिल जाता, तो देवी शायद कोई वरदान ही दे देती।।

हमारा हर बोला गया शब्द हमारा कल्याण भी कर सकता है और हमारा काम बिगाड़ भी सकता है। हम जब जाने अनजाने, आवेश में जब किसी को गधा, उल्लू और पाजी बोलते हैं, तो क्या आप सोचते हैं, लक्ष्मी प्रसन्न होती है, लो, दो हजार के नोट पर गाज गिर ही गई।

हर प्राणी में ईश्वर का वास होता है, क्या पता कौन प्राणी किस देवता का वाहन निकल जाए।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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