श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “बड़े काम के आदमी।)

?अभी अभी # 287 ⇒ बड़े काम के आदमी… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

वैसे तो कोई काम बड़ा छोटा नहीं होता, आदमी ही बड़ा छोटा होता है, फिर भी, काम के आदमी के लिए, काम की कोई कमी नहीं। होते हैं कुछ लोग, काम के न काज के, दुश्मन अनाज के।

यह दुनिया भी अजीब है। यहां किसी को काम की तलाश है, तो किसी को काम के आदमी की तलाश। एक कहावत भी है, जिसका काम, उसी को साजे। क्या बात है, मकान का काम क्यूं ठप पड़ा है, क्या बताएं, कोई ढंग का कारीगर ही नहीं मिलता। अच्छा मिलता है तो टिकता नहीं, और जो टिकता है, वह किसी काम का नहीं।।

वैसे तो दुनिया चलती रहती है, किसी का काम नहीं रुकता। फिर भी आदमी वही, जो वक्त पड़ने पर किसी के काम आए।

अपना काम तो सभी करते हैं, लेकिन होते हैं कुछ ऐसे लोग भी, जो बिना किसी स्वार्थ अथवा लालच के, किसी का अटका हुआ काम, आसानी से पूरा करवा देते हैं। उनके लिए अक्सर अंग्रेजी के एक शब्द का प्रयोग होता है, वे बड़े हेल्पिंग नेचर के हैं।

यह दुनिया इतनी भली भी नहीं। दुनिया ओ दुनिया, तेरा जवाब नहीं।

यहां कुछ काम जब आसानी से नहीं निकलते, तब टेढ़ी उंगली से घी निकालना पड़ता है, और तब काम आते हैं कुछ ऐसे लोग, जिन्हें बड़े काम का आदमी कहा जाता है।।

ऐसे लोगों की एक क्लास होती है, जो साम, दाम, दंड भेद, यानी by book or by crook, आपका काम निकलवाना जानते हैं, फिर भले ही काम, दफ्तर में आपके ट्रांसफर का हो, प्रमोशन का हो, अथवा

रुकी हुई पेंशन का। मकान का नक्शा पास नहीं हो रहा हो, लड़की की शादी नहीं हो रही हो, साले की कहीं नौकरी नहीं लग रही हो, ऐसे में जो व्यक्ति संकटमोचक बनकर प्रकट हो जाए, वही आदमी बड़े काम का आदमी कहलाता है।

सरकारी दफ्तरों में नौकरशाही चलती है। वहां भी एक फोर्थ क्लास होती है, बाकी सभी क्लास थर्ड क्लास होती है। अफसर, बाबू, और बड़े बाबू

जो काम नहीं करवा सकते, वह काम कभी कभी साहब का ड्राइवर अथवा चपरासी चुटकियों में करवा देता है, क्योंकि उसकी पहुंच साहब के गृह मंत्रालय तक होती है।।

एक चीज आपको बता दूं, बड़े काम का आदमी, कभी ओहदे से बड़ा नहीं होता। बड़े काम का आदमी वह होता है, जो उस ओहदे वाले से आपका काम निकलवा दे। कांटा कितना भी बड़ा हो, एक सुई ही काफी होती है, उसे निकालने के लिए।

सुई की तरह कहीं दबे हुए, छुपे हुए होते हैं समाज में ये बड़े काम के आदमी। बस जिसके हाथ लग जाए, समझिए उसकी लॉटरी लग गई। बड़े मिलनसार, व्यवहार कुशल, हमेशा मुस्कुराने वाले होते हैं ये बड़े काम के आदमी। साहित्य, धर्म, राजनीति, समाज के हर क्षेत्र में, यत्र, तत्र, सर्वत्र खुशबू की तरह फैले हुए हैं, ये बड़े काम के आदमी, तलाशिए जरूर मिलेंगे। हो सकता है, आप उन्हें जानते भी हों। पूरी दुनिया टिकी हुई है, ऐसे ही बड़े काम के आदमियों के कंधों पर। मानिए या ना मानिए।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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