श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “जश्न और त्रासदी “।)

?अभी अभी # 213 ⇒ एक संवाद आइने से… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

आईना मुझसे मेरी पहली सी सूरत मांगे ! एक भोला भाला, मासूम, सफाचट चेहरा मांगे।

अब उस चेहरे पर परिपक्वता के साथ सफेद काली दाढ़ी मूंछ भी आ गई है। जिसका जो चेहरा होता है, वही स्वीकारा जाता है, आईने का इसमें क्या जाता है।।

कौन पहचानता है आज वह तस्वीरों में धुंधला सा श्वेत श्याम चेहरा, जरा आज देखिए उन चेहरों की ओर ! हर ओर विराट कोहली और केबीसी के बिग बी के चेहरों का शोर। जहां दाढ़ी नहीं, विराट नहीं, अमिताभ नहीं।

कितने चेहरों पर चढ़ गई विराट और महानायक की दाढ़ी, आइना गवाह है। किसको आज ५६ इंच के सीने का सफाचट चेहरा याद है। मोदी जी की दाढ़ी ही चेहरा है, ये इंसान आज कौन नहीं, आइकॉन है।।

इनमें से कोई नहीं कहता, चाहता, कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन। अगर आज आइना, इन्हें अपना वही पुराना चेहरा दिखाने चले, तो ये आईने को ही बदल दें। जो युग बदलना जानता है, क्या वह एक आईना नहीं बदल सकता।

इतनी जिद भी ठीक नहीं ऐ दकियानूस आइने ! अपनी औकात में रह। तू पहले खुद अपना चेहरा आईने में देख ले, तुझे कुछ भी नजर नहीं आएगा। जो चेहरे जैसे असली नकली, नकाबपोश और पर्दानशीं नजर आते हैं, उनके ही पीछे उनकी असलियत छुपी होती है।

पैसा, प्रसिद्धि और लोकेष्णा एक चेहरे पर कई चेहरे लगा देती है।

बिना शर्त और बिना किसी मांग के उनकी खुशी में तू अपनी खैर मना, क्योंकि तू है सिर्फ एक आइना।।

एक शुभचिंतक !

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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