श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  आपकी एक विचारणीय कविता  – “चैनसिंह का बगीचा”।)

?अभी अभी # 189 ⇒ चैनसिंह का बगीचा… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

नदी हमें नहीं बांटती

हम नदी को बांटते हैं

पानी में लकीर खींचते हैं

सरहद बनाते हैं ;

हमने धरती बांटी

अम्बर बांटा

समंदर बांटा

कभी मंदर तो कभी

हरमंदर बांटा ।

बस प्यार नहीं बांटा

नफरत और गुस्सा बांटा

थप्पड़ का जवाब चांटा

पत्थर का जवाब भाटा ;

भूल गए इंसानियत

फैलाई सिर्फ दहशत

नहीं सहमत, तो सह मत

जहां नहीं चैन, वहां रह मत ।।

हम इस पार और उस पार

को नहीं मानते

बस, आरपार को मानते हैं,

कभी खुद को खुदा और

गधे को रहनुमा मानते हैं;

वैसे तो हम बहुत जानते हैं

लेकिन सयानों की कभी,

बात नहीं मानते,  

स्वार्थ, खुदगर्जी, अवसरवाद और मस्ती को ही

अपना आदर्श मानते हैं।

फिर भी हम इतने अच्छे

और लोग इतने बुरे क्यों हैं

यह भ्रम पालते हैं,

गाय तो पाल सकते नहीं

लेकिन इतने बड़े भक्त हैं कि,

स्वामिभक्ति के लिए कुत्ता पालते हैं ;

शासन ही अनुशासन

जिसकी लाठी, उसकी भैंस

पैसा फेंक, तमाशा देख,

दु:शासन गिन रहा अंतिम सांसें, सुशासन में चैन

फिर भी मूढ़मति

तेरा क्यूं मन बैचेन ।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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