श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “चेहरा और किताब।)  

? अभी अभी ⇒ चेहरा और किताब? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

जो किताब पढ़े, वह रीडर, और जो चेहरा पढ़े, वह फेस रीडर। किताब कोई खत का मजमून नहीं, कि बिना खोले ही पढ़ लिया। किताब पढ़ने के लिए पढ़ा लिखा होना जरूरी  होता है लेकिन चेहरा तो कोई भी आसानी से पढ़ सकता है, उसके लिए कौन से ढाई अक्षर पढ़ना जरूरी है।

सुना है, चेहरे को दिल की किताब कहते हैं। यानी यह भी सिर्फ सुना ही है, किताबों में नहीं पढ़ा।

न जाने क्यों हम सुनी सुनाई बातों पर विश्वास कर लिया करते हैं। जब कि हमारे कबीर साहब जानते हैं क्या फरमा गए हैं ;

तू कहता कागद की लेखी

मैं कहता आंखन की देखी;

यानी किताबों में लिखा झूठ, और आंखों देखा सच। अजीब उलटबासी है भाई ये कबीर की वाणी। ।

किताबों में किस्से कहानियां होती हैं, चलिए मान लिया, तस्वीर भी हो सकती है, लेकिन आपको किताब खोलनी पड़ती है, किताबों के पन्ने पलटना होता है किताब को पढ़ना पड़ता है, जब कि कुछ चेहरे तो बिलकुल मानो, खुली किताब ही होते हैं। कोई किताबों में डूबा हुआ है, तो कोई किसी के चेहरे को ही पढ़ता चला जा रहा है।

उधर पन्नों में आंखें गड़ाई जा रही है और इधर झील सी आंखों में गोते लगाए जा रहे हैं। हम भी डूबेंगे सनम, तुम भी डूबोगे, सनम। कोई थोड़ा ज्यादा तो कोई थोड़ा कम। कभी कोई किताब, तो कभी की किसी का चेहरा, पढ़ते हैं हम।।

हम कोई गोपालदास नीरज तो नहीं कि शौखियों में शबाब और फूलों में शराब को मिलाकर प्यार का नशीला शर्बत तैयार कर दें, लेकिन चेहरे और किताब की कॉकटेल बनाकर पेश जरूर कर सकते हैं। जी हां, फेसबुक वही कॉकटेल तो है, जहां हर चेहरा एक खुली किताब है।

स्कूल कॉलेज में कॉपी किताबें होती थीं, उनके पन्ने होते थे। फेसबुक एक ऐसी चेहरे वाली किताब है, जिसमें चेहरों वाले पन्ने ही पन्ने हैं। किसी का भी चेहरा निकालो, और पढ़ना शुरू कर दो। हुई ना यह चेहरों वाली किताब। ।

किसी के लिए यह एक चलता फिरता, घर पोंच वाचनालय है तो किसी के लिए एक छापाखाना। यहां कहीं खबरें बिखरी हैं तो कहीं गप्पा गोष्ठी और साहित्य विमर्श हो रहा है।

यहां अभ्यास मंडल भी है और संसद का शून्य काल भी।

किसी ने अपने घर में ताला लगा रखा है तो कहीं प्रवेश निषेध है। सबसे बड़ी खूबी इसमें यह है कि यह 24×7 मुक्त विश्वविद्यालय यानी एक ओपन यूनिवर्सिटी है। कुछ लोग यहां पढ़ने पढ़ाने, तो कुछ टाइम पास करने भी आते हैं। ।

कितनी किताबें, कितने पन्ने और कितने चेहरे ! यहां हर चेहरा कुछ कहता है। एक दूसरे के सुख दुख में शामिल होता है। वह यहां अपनी कहता है, तो दूसरों की सुनता भी है। हंसता, मुस्कुराता, खिलखिलाता है। आज अगर मुकेश होते तो शायद वे भी यही गुनगुनाते ;

फेसबुक की दुनिया में

आ गया हूं मैं

आ गया हूं मैं ..!!

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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