श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “कुछ तो बोलो”।)  

? अभी अभी # 133 ⇒ कुछ तो बोलो? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

 

कुछ हमसे बात करो !

कुछ लोग बोलने को, बातें करने को तरस जाते हैं।

वे बोलते हैं, तो उन्हें कोई सुनने वाला नहीं होता, वे चाहते हैं, कोई उनसे सुख दुख की बात करें, लेकिन उन्हें कोई बात करने वाला ही नहीं मिलता।

बातों से हमारे जज्बात जुड़े रहते हैं। किसी की बात समझने के लिए, उसके दिल की गहराइयों तक जाना पड़ता है, लेकिन हम इतने खुदगर्ज होते हैं कि जब तक किसी से कोई फायदा मतलब ना हो, हम किसी को घास नहीं डालते। होती है एक उम्र बेफिक्री और नादानी की, जिसमें सब अपने ही नजर आते हैं। किसी से भी दिल खोलकर बातें करने की।।

बच्चा जब छोटे से बड़ा होने लगता है, तो सबसे पहले चलना और बोलना सीखता है। वह लगातार चलते ही रहना चाहता है, बिना रुके बोलते रहना चाहता है। वह सुनता है, समझता है और छोटे छोटे वाक्य बनाकर अपनी बातें समझाना चाहता है, कभी तुतलाता है, तो कभी हकलाता है।

कितनी प्यारी लगती है, बच्चों की बोली ! है न, है न, है न, के बिना गाड़ी ही स्टार्ट नहीं होती। और एक बार गाड़ी स्टार्ट हुई तो फिर जिंदगी भर रुकने का नाम नहीं लेती। बातों से पेट नहीं भरता, लेकिन बात है कि हजम भी नहीं होती।।

लेकिन अचानक क्या बात हो जाती है, कि कभी कभी बात ही नहीं बन पाती। कुछ बातें कही नहीं जाती, और कुछ बातें, कहे बिना रहा नहीं जाता। इंसान समझ ही नहीं पाता, जाएं तो जाएं कहां ! समझेगा, कौन यहां, दिल की जुबां।

कभी खुद पे, कभी हालात पे रोना आया, बात निकली तो, हर बात पे रोना आया !

अचानक उसे लगता है, वह बहुत अकेला है।।

उनको ये शिकायत है कि,

हम कुछ नहीं कहते।

अपनी तो ये आदत है कि

हम कुछ नहीं कहते।

लेकिन ऐसा होता क्यों है, क्योंकि कुछ कहने पे, तूफान उठा लेती है ये दुनिया। अब इस पे कयामत है कि, हम कुछ नहीं कहते।

यूं हसरतों के दाग, मुहब्बत में धो लिए। खुद दिल से दिल की बात कही, और रो लिए। होठों को सी चुके तो जमाने ने यूं कहा, यूं चुप सी क्यूं लगी है, अजी कुछ तो बोलिए।।

बोलने से इंसान हल्का होता है, जब कोई नहीं सुनता, तो इंसान खुद को ही सुनाता है, कभी खुद से बात करता है, कभी आईने से। कभी रूमाल गीले करता है तो कभी कागज़ रंग देता है। कभी गज़ल, रुबाई, कविता, तो कभी महाकाव्य प्रकट हो जाता है।

हम वही सुनना चाहते हैं जो कर्णप्रिय हो। बच्चों की मीठी बातें, कोयल की कूक, सुर संगीत की तान, किसी का दुखड़ा, किसी की कर्कश आवाज, क्रोध और अपमान भरे शब्द कौन सुनना चाहेगा।।

और आखिरकार उम्र का एक पड़ाव ऐसा भी आ जाता है कि आदमी अकेला पड़ जाता है ;

साथी ना कोई मंजिल

दीया है न कोई महफिल

चला मुझे लेके ऐ दिल

अकेला कहां …

और वह बेचारा कहता रह जाता है, बीती बातों का कुछ खयाल करो। कुछ तो बोलो, कुछ हमसे बात करो। तुम मुझे यूं भुला न पाओगे।।

अपनी अपनी सभी कहना चाहते हैं, दूसरों की कोई सुनना नहीं चाहता, फिर भी एक अदृश्य श्रोता है, जो सबकी सुनता भी है, और सबको समझता भी है, बस उसे ही सुनाएं अपना हाले दिल, करें अपनी दास्तान बयान, वह सुनेगा, मन लगाकर सुनेगा, आपके अंदर बैठकर सुनेगा। उसके रहते कभी आप अकेले नहीं, असहाय नहीं, बेचारे नहीं।

सुनता है गुरु ज्ञानी ..!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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