श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “उंगलियों का अंक गणित”।)  

? अभी अभी # 116 ⇒ उंगलियों का अंक गणित? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

 

हम आज न तो हाथों की चंद लकीरों का जिक्र करेंगे और न ही आसन, प्राणायाम से जुड़ी मुद्राओं का, हमारे दोनों हाथों की दस उंगलियों का सीधा सादा गणित है यह, जिसका न तो सामुद्रिक शास्त्र से कुछ लेना देना है, और न ही हस्त रेखा और ज्योतिष अथवा एक्यूप्रेशर से।

जिन उंगलियों पर आज नारियां पुरुषों को नचा रही हैं, कभी उन उंगलियों पर बचपन में हमने गिनती सीखी है, जोड़ना घटाना सीखा है। कहने को हमारी उंगलियां पांच हैं, लेकिन हर उंगली के बीच तीन आड़ी लकीरें हैं, और दाहिने अंगूठे

के बीच चार। वैसे जरूरी नहीं, आपके हाथ में भी ऐसा ही हो। जोड़ने वाले इसे किसी भी विज्ञान से जोड़ें, हम तो मुट्ठी बांधते हैं और खोलते हैं, जहां जहां से उंगलियां मुड़ती हैं, वहां लकीरें स्वाभाविक रूप से ही बन जाती हैं।।

हमने इन उंगलियों पर दिन रात गिने हैं, सप्ताह के दिन गिने हैं, इंतजार के दिन गिने हैं और बैंक की नौकरी में इन्हीं उंगलियों से नोट भी गिने है। इन्हीं उंगलियों को हमने कभी कैसियो और हारमोनियम पर नचाया है तो इन्हीं उंगलियों से हमने घंटों टाइपराइटर पर थीसिस भी टाइप की है। हमारे जीवन में हमने कभी किसी पर अनावश्यक उंगली नहीं उठाई और न ही किसी ने कभी हमें उंगली दिखाई।

हमारा अंकों और अक्षरों का ज्ञान पट्टी पेम अर्थात् स्लेट से ही तो शुरू होता था। गिनती के लिए एक लकड़ी अथवा प्लास्टिक का बोर्ड आता था, जिसके अंदर दस पतले तारों के बीच कुछ लकड़ी अथवा प्लास्टिक के मोटे, गोल गोल दाने झूलते रहते थे। हर खाने में दस दाने होते थे। आप उनको हाथ से चलाकर गिन सकते थे। गिनती सीखने का यह बोर्ड एक खिलौना था बच्चों के लिए। फिसलपट्टी की तरह दाने फिसल रहे हैं, एक, दो, तीन, चार और इस तरह गिनती भी सीखी जा रही है, एक से सौ तक। मोतियों की माला की तरह ही तो था यह टेबल बोर्ड।।

स्लेट पट्टी और ऐसे खिलौने छूट गए लेकिन उंगलियों पर गिनने की कला आज भी जारी है। सभी चीजें उंगलियों पर ही तो याद की जाती हैं, आटा, दाल, शकर, माचिस, तेल और बच्चों की मैगी भी खत्म हो गई। क्या क्या याद रखें।

घर के सदस्यों और रिश्तेदारों की लिस्ट तो हम पहले उंगलियों पर ही बनाते थे। तीस तक की संख्या तो उंगलियों के बीच आसानी से समा जाती थी। जब कोई बड़े अंकों वाली संख्या पढ़ने में आती थी, तो उंगलियों पर गिनना पड़ता था, इकाई, दहाई, सैकड़ा, हजार, दस हजार, लाख, दस लाख, बाप रे, यह तो पच्चीस लाख है।।

हमने बहुत कुछ याद किया है इन उंगलियों पर। हनुमान चालीसा हो अथवा दोहा चौपाई। दादी जी को हमने इन्हीं उंगलियों से माला जपते देखा है। हमने इन्हीं उंगलियों पर अगर समय को नापा है तो पैदल चलते समय, दूरी को भी नापा है। चलते वक्त हम अपने ही कदम उंगलियों पर गिनते जाते हैं। इन उंगलियों पर हमने हजारों तक गिनना सीख लिया है। कितने कदम चलने पर एक किलोमीटर होता है, हमें अच्छी तरह ज्ञात है। आजकल यह काम भी महंगी महंगी घड़ियां कर रही हैं।

कभी जो अपना हाथ जगन्नाथ था, उसके बीच आज एड्रॉयड, डेस्कटॉप और पीसी आ गया है। उंगलियों के साथ आंखें भी व्यस्त हो गई हैं। जो उंगलियां कभी आजाद थी, आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की गुलामी कर रही है। इंसान वर्कोल्हिक

और बच्चे भी आपस में ऑनलाइन हो गए हैं। इतना होमवर्क और कितने कंप्यूटर गेम्स, क्या करे बेचारे। आंखों पर चश्मा तो चढ़ना ही है।।

हम किसी पर उंगली नहीं उठा रहे, बस आज भी अपनी उंगलियों का कमाल देखते हैं। इसी उंगली पर किसी ने गोवर्धन पर्वत धारण किया था और समय आने पर सुदर्शन चक्र भी चलाया था। एकलव्य ने गुरु दक्षिणा में अपना अंगूठा भेंट किया था, फिर भी वह अर्जुन जैसा ही धनुर्धर था।

हम भी अगर चाहें तो हमारी पांचों उंगलियां घी में हो सकती हैं, बस अपने सर को कढ़ाई से बचा लीजिए। अनावश्यक कहीं उंगली मत कीजिए, अपनी उंगलियों का सदुपयोग कीजिए। किसी कंप्यूटर से कम नहीं आपकी दसों उंगलियां।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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